SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * ७८ ÷ बारहवाँ बोल : पाँच इन्द्रियों के तेईस विषय (३) लघु स्पर्श, (४) गुरु स्पर्श, (५) शीत स्पर्श, (६) उष्ण स्पर्श, (७) स्निग्ध स्पर्श, (८) रूक्ष स्पर्श । ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖-------------- जगत् के समस्त पदार्थ दो भागों में विभक्त हैं - एक मूर्त पदार्थ और दूसरे अमूर्त पदार्थ | जिनमें वर्ण, गंध, रस व स्पर्श आदि हों वे पदार्थ मूर्त्त हैं और जिनमें इनका अभाव हो वे अमूर्त पदार्थ हैं। आत्मा अमूर्त पदार्थ है क्योंकि वह वर्णहीन, गन्धहीन, रसहीन व स्पर्शनहीन आदि होता है। मूर्त्त पदार्थों का सम्बन्ध इन्द्रियों से रहता है क्योंकि ये पदार्थ इन्द्रियों द्वारा ही ग्राह्य हैं, इन्द्रियों द्वारा ही ज्ञेय हैं । इन्द्रियाँ पाँच हैं (१) श्रोत्रेन्द्रिय. (२) चक्षुरिन्द्रिय, (३) घ्राणेन्द्रिय. (४) रसनेन्द्रिय, (५) स्पर्शनेन्द्रिय । पाँचों इन्द्रियों के धारक जीव सकलेन्द्रिय/समनस्क - अमनस्क होते हैं। इन्द्रियों की अपेक्षा से ये पूर्ण विकसित जीव हैं। कम इन्द्रियों वाले जीव विकलेन्द्रिय तथा अविकसित कहलाते हैं । प्रत्येक इन्द्रिय का अपना एक विषय होता है। जैसे श्रोत्रेन्द्रिय का विषय शब्द है, उसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय का विषय वर्ण है, घ्राणेन्द्रिय का गंध, रसनेन्द्रिय का रस तथा स्पर्शनेन्द्रिय का स्पर्श है। ये पाँचों विषय जो अलग-अलग दर्शाए गये हैं, यथार्थतः ये एक ही द्रव्य के भिन्न-भिन्न अंश या पर्याय हैं। अर्थात् पाँचों इन्द्रियों के ये पाँच विषय अलग-अलग वस्तु न होकर एक ही मूर्त्त द्रव्य के पर्याय हैं। जैसे एक लड्डू है। इस लड्डू को भिन्न-भिन्न रूपों से पाँचों इन्द्रियाँ जानती हैं। अंगुली छूकर उसके शीत-उष्ण आदि स्पर्श का ज्ञान करा सकती है। जीभ चखकर उसके खट्टे-मीठे आदि रसों का, नाक सूँघकर
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy