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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * ५५ * उपयोग के लिए व्यवहृत हैं। यह उपयोग तीन प्रकार का होता है-एक शुभ उपयोग, दूसरा अशुभ उपयोग और तीसरा शुद्धोपयोग। पहले के दो संसार का कारण होने से परमार्थतः हेय हैं और शुद्धोपयोग मोक्ष का कारण होने से सर्वथा उपादेय है। उपयोग की प्रबलता ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय इन दो कर्मों के क्षय और क्षयोपशम पर ही निर्भर करती है। जितना अधिक इन कर्मों का क्षयोपशम होगा उतना ही अधिक उपयोग निर्मल होगा। इसके दो भेद हैं-एक ज्ञानोपयोग और दूसरा दर्शनोपयोग। पहले में चेतना की शक्ति ज्ञानाकार न होकर ज्ञेयाकार होती है। चेतना की यह शक्ति सामान्य न होकर विशिष्ट होती है जबकि दूसरे में चेतना की शक्ति किसी वस्तु-विशेष के प्रति विशेष रूप से न होकर सामान्य रूप से उसे ग्रहण करती है। इस दृष्टि से उपयोग के दो भेद हैं-एक साकार उपयोग और दूसरा अनाकार उपयोग। ज्ञानोपयोग साकार उपयोग कहलाता है जबकि दर्शनोपयोग को अनाकार उपयोग कहते हैं क्योंकि आत्मा का ज्ञानगुण साकार है और दर्शनगुण निराकार है। जो बोध ग्राह्य वस्तु को विशेष रूप से जानने वाला हो अर्थात् पदार्थों के विशेष धर्म, गुण, क्रिया का बोध कराने वाला हो, वह साकार उपयोग या ज्ञानोपयोग है। इसे सविकल्प बोध भी कह सकते हैं। जो बोध ग्राह्य वस्तु को सामान्य रूप से जानने वाला हो अर्थात् पदार्थों के अस्तित्व या सत्ता का सामान्य बोध कराने वाला हो, वह अनाकार उपयोग या दर्शनोपयोग है। इसे निर्विकल्प बोध भी कहते हैं। प्रत्येक पदार्थ सामान्यविशेषात्मक है। प्रत्येक पदार्थ में सामान्य गुण भी होता है और विशिष्ट गुण भी। विशिष्टता का सम्बन्ध ज्ञान से है और सामान्य का सम्बन्ध दर्शन से है। ज्ञान के पाँच भेद हैं। यथा(१) मतिज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मनःपर्यवज्ञान, (५) केवलज्ञान। इन्द्रिय और मन के सहयोग से होने वाला ज्ञान मतिज्ञान है। यह ज्ञान वर्तमान विषयक है। कारणभेद से इसके दो भेद हैं-एक इन्द्रियजन्य मतिज्ञान और दूसरा मनोजन्य मतिज्ञान। चक्षु, श्रोत्र आदि इन्द्रियों से होने वाला ज्ञान
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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