SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * ५३ * शरीर की भाँति तैजस् शरीर का योग क्यों नहीं होता? इसका समाधान यह है कि तैजस् शरीर के योग को स्वतंत्र रूप से मानने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि तैजस् का कार्मणयोग में समावेश हो जाता है। जिस समय औदारिक, वैक्रिय और आहारक होते हैं उस समय तो वे अपना काम करते ही हैं। परन्तु जिस समय वे नहीं होते तब कार्मण शरीर के द्वारा जो वीर्य-शक्ति का व्यापार या प्रवृत्ति होती है, वह तैजस् शरीर के द्वारा होती है। अतः तैजस् काययोग का कार्मण काययोग में ही समावेश हो जाता है। तेजस् और कार्मण शरीर सदा सहचर रहते हैं। (आधार : भगवतीसूत्र, शतक २५) प्रश्नावली १. योग किसे कहते हैं? समझाइए। २. छद्मस्थ और केवली के योग में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए। ३. मनोयोग के स्वरूप पर प्रकाश डालिए। ४. वचनयोग से क्या तात्पर्य है? इसके कितने भेद-प्रभेद हैं? ५. काययोग का वर्णन कीजिए। ६. स्थावर, विकलेन्द्रिय, तिर्यंच और समनस्क मनुष्यों में कौन-कौन-से योग होते ७. औदारिक, वैक्रियक, आहारक और कार्मण शरीर की भाँति तैजस शरीर का योग क्यों नहीं माना गया है?
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy