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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * २१ * - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - मृदु, शीतल, खारा व मीठा आदि जल। आधुनिक विज्ञान भी शुद्ध जल, भारी जल, लवणीय जल व गंधकीय जल आदि जल के अनेक प्रकार मानता है। इसके अनुसार समस्त जल एक समान नहीं है। प्रत्येक की अपनी-अपनी विशेषताएँ होती हैं, गुण व मूल्य होता है। उदाहरण के लिए, एक विशेष प्रकार का जल होता है जो आणविक विद्युत् संयंत्रों के उपयोग में आता है। यह जल बहुमूल्य धातुओं के समान मूल्यवान होता है। इसी प्रकार किसी जल की प्रकृति रोग-निवारक है तो किसी की रोग उत्पादक या रोगवर्द्धक। जल में निहित विशेषताओं को वैज्ञानिक धरातल पर 'रासायनिक प्रक्रियाओं' के नाम से जाना जाता है। जल की रासायनिक प्रक्रियाएँ इतनी असामान्य हैं कि आज तक कोई भी वैज्ञानिक इनका सही उत्तर नहीं दे पाया।' पृथ्वीकाय जीवों की तरह अप्काय जीवों की प्रकृति का प्रभाव भी मनुष्यों पर पड़ा करता है। (३) तैजसकाय · जैनदर्शन अग्नि में भी जीव तत्त्व स्वीकारता है। भीषण अग्निकाण्ड एवं विस्फोट के समय यह स्थिति देखी जा सकती है। तैजस्काय जीवों की इस शक्ति के सामने मानव की समस्त शक्तियाँ प्रायः पराजित हैं। तैजस्काय जीवों के लिए भी ऑक्सीजन अनिवार्य है। ऑक्सीजन के अभाव में आग बुझ जाती है, यानी इन जीवों में भी श्वासोच्छ्वास की क्रिया होती है जिसमें ऑक्सीजन श्वास के रूप में ली जाती है और कार्बन डाइऑक्साइड उच्छ्वास के रूप में बाहर निकाली जाती है। यह इस बात का प्रमाण है कि आग या तैजस्काय जीवों में भी जीवन है, सजीवता है। यद्यपि वर्तमान में विज्ञान इनमें जीवत्व का होना नहीं स्वीकारता किन्तु कालान्तर में नित्य नयी खोजों के उपरान्त विज्ञान को भी इनमें जीवत्व मानना पड़ेगा। जब तक इन जीवों में विरोधी शस्त्र न लगे तब तक अग्नि सचित्त होती है। विरोधी शस्त्र के योग से वह अचित्त हो जाती है। इन जीवों के शरीर से प्रकाश (रोशनी) प्रभावित रहता है। ___ वन या समुद्र में आग लगने पर यह मीलों बढ़ती ही चली जाती है। इस दृष्टि से आप यह कह सकते हैं कि जिस प्रकार त्रसकाय जीव चलते हैं उसी प्रकार अग्नि भी चलती है। तैजस्काय जीवों के चलने की यह क्रिया दावानल या बड़वानल के रूप में देखी जा सकती है। जैनदर्शन में भी अग्निकाय और १. नवनीत, जुलाई १९५९
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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