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________________ * १८ * तीसरा बोल : काय छह बर्र, पशु, पक्षी, मनुष्य आदि हो, वे त्रसकायिक जीव कहलाते हैं। इस सम्बन्ध में एक बात ध्यान देने योग्य है कि पृथ्वी, जल आदि जिनकी काया हो वे ही जीव पृथ्वीकाय, जलकायादि जीव हैं। उनके आश्रय में रहने वाले जीव पृथ्वीकायिक आदि कदापि नहीं कहे जा सकते। वे तो स्पष्ट ही त्रसकायिक जीव हैं। उदाहरण के लिए, आधुनिक विज्ञान के अनुसार शुद्ध जल की एक बूंद में ३६,४५० चलते-फिरते जीव शक्तिशाली माइक्रोस्कोप यन्त्र से देखे गये हैं। ये सभी जीव त्रसकायिक हैं। जल तो सिर्फ उनका आश्रय-स्थल है इसलिए वे जलकायिक जीव नहीं हैं। इसी आधार पर जैनधर्म में कच्चे पानी को सचित्त अर्थात् जीव सहित बताकर अचित्त जल के ही प्रयोग का विधान है। इसी तरह अन्य जीवों के सन्दर्भ में समझा जा सकता है। . _ 'काया' की दृष्टि से समस्त संसारी जीव छह भागों में विभक्त हैं जिन्हें जैनागम में ‘षड्जीव निकाय' कहा गया है। निकाय का अर्थ है-समूह। ये इस प्रकार हैं (१) पृथ्वीकाय जीव, (२) अप्काय जीव, (३) तैजस्काय जीव, (४) वायुकाय जीव, (५) वनस्पतिकाय जीव, (६) त्रसकाय जीव। गतिशीलता और स्थिरता के आधार पर इन षड्जीव निकायों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-एक स्थावर जीव और दूसरे त्रस जीव। सामान्यतः एक ही स्थान पर स्थिर रहने वाले जीव स्थावर जीव और चलने-फिरने वाले जीव त्रस जीव कहलाते हैं। स्थावर जीवों में केवल एक ही बाह्य इन्द्रिय अर्थात् स्पर्शनेन्द्रिय ही होती है जबकि त्रसकाय जीवों में द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव समाहित हैं। स्थावर जीव चूँकि जीव हैं, इसलिए उनमें सुखदुःख, इच्छा, राग-द्वेषादि भाव, समायोजन व्यवस्था, संवेदनशीलता, संचार व्यवस्था, उद्दीपन, चयापचय, वृद्धि, विकास और प्रजनन आदि तो होते हैं १. स्निग्ध पदार्थ विज्ञान, इलाहाबाद गवर्नमेंट प्रेस, कैप्टन स्कोर्स द्वारा सूक्ष्मदर्शक यन्त्र से लिए गये चित्रानुसार।
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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