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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * १५१ * विवेकवान अर्थात् सम्यक्त्वी होते हैं। शास्त्रीय शब्दावली में वे पंचम गुणस्थानवर्ती होते हैं। ऐसे श्रावक-श्राविकाएँ या उपासक-उपासिकाएँ यावज्जीवन अपने आचरण को सुदृढ़ बनाए रखने के लिए अपनी समस्त प्रवृत्तियों को आत्मोन्मुखी रखते हैं, यानी उनकी वृत्तियाँ निवृत्तिपरक होती हैं। निवृत्ति के लिए वे व्रतों का पालन करते हैं। व्रतों के माध्यम से ही वे मर्यादापूर्वक निष्ठा के साथ संकल्पबद्ध होकर श्रमणधर्म पर स्वेच्छा से चल सकते हैं अर्थात् कर्मों की निर्जरा करते हुए अपनी आत्मा को परिशुद्ध कर स्वयं परमात्मा बन सकते हैं। जैनधर्म में व्रत के दो रूप हैं। यथा-(१) अणुव्रत, (२). महाव्रत। अंशतः या एकदेशीय व्रत अणुव्रत और सर्वदेशीय या सर्वतः व्रत महाव्रत कहलाता है। श्रावक अणुव्रत का पालन करता है और साधु या साधक महाव्रत को साधता है। श्रावक-श्राविका के लिए यह व्यावहारिक नहीं है कि वह गृहस्थ में रहकर महाव्रतों का पालन कर सके। अतः श्रावक-श्राविका अपने सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार अंश रूप में अर्थात् अणु रूप में अपने जीवन को व्रतमय बना सकते हैं। अणुव्रत से आत्मा की संसार या सांसारिक सुख-भोग आदि की अनादिकालीन मूर्छा टूटती तो है परन्तु इसमें संसार का रागभाव अंश रूप में बना ही रहता है। चूंकि इसमें रागभाव अंश रूप में बना रहता है तो व्रती के त्याग रूप परिणाम कैसे हो सकते हैं ? इसलिए ऐसा व्रत जिसमें रागभाव पूर्णरूपेण समाप्त नहीं हुआ हो किन्तु कम अवश्य हुआ हो, महाव्रत नहीं, अणुव्रत कहलाता है। जैसे-धूल से आच्छादित एक दर्पण है, वायु के संयोग से इस पर कुछ अंश में यदि धूल हट जाए तो उतने ही अंश में दर्पण की उज्ज्वलता परिलक्षित हो उठेगी। इसी प्रकार आत्मा में अनन्तकाल से आच्छादित मोह-मूर्छा जितने अंश में हटती या टूटती है उतने ही अंश में वह विरतिपूर्वक व्रत. ग्रहण कर लेता है, ऐसा व्रत अणुव्रत कहलाता है और अणुव्रतों के पालने वाले को श्रावक कहते हैं। अणुव्रती श्रावक सामान्यतः तीन योग अर्थात् मन, वचन, काय से और दो करण अर्थात् कृत व कारित से व्रत को ग्रहण करता है, यानी. हिंसादि सावध प्रवृत्ति का त्याग करता है। ___ इस बोल में श्रावक के बारह व्रतों का उल्लेख हुआ है। ये बारह व्रत इस प्रकार हैं (१) पाँच अणुव्रत,
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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