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________________ है आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल ÷ १२३ सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए जैनागम में पाँच लब्धियों का होना बताया गया (१) क्षयोपशम लब्धि, (२) विशुद्धि लब्धि, (३) देशना लब्धि, (४) प्रायोग्य लब्धि, (५) करण लब्धि | जीवों में यह सम्यक्त्व दो प्रकार का होता है - एक नैसर्गिक रूप से जिसे निसर्गज सम्यक्त्व और दूसरा 'पर' के निमित्त से जिसे अधिगमज सम्यक्त्व कहते हैं। पहले प्रकार के सम्यक्त्व में जीव के स्वयं के आन्तरिक परिणाम निमित्त या सहयोगी बनते हैं। इसमें पर के उपदेश आदि की अपेक्षा नहीं रहती है । दूसरे प्रकार के सम्यक्त्व में 'पर' अर्थात् साधु-साध्वी शास्त्र - स्वाध्याय आदि के निमित्त या सहयोग की अपेक्षा रहती है। इन दोनों में यही मूलभूत अन्तर है कि पहले प्रकार के सम्यक्त्व में बाहरी निमित्त की आवश्यकता नहीं रहती है जबकि दूसरे में बाहरी निमित्त की अपेक्षा रहती है। इस तथ्य को इस प्रकार से समझ सकते हैं जिस प्रकार नदी में बहता हुआ नुकीला पत्थर रगड़ खाते-खाते स्वयं गोल हो जाता है, उसी प्रकार अनादि मिथ्या दृष्टि जीव भी संसार के अनेक विधि कष्ट और संकट भोगते हुए स्वयं ही उसके परिणाम सम्यक्त्व - प्राप्ति के योग्य हो जाते हैं और बिना किसी उपदेश के ही सम्यक्त्व की प्राप्ति हो जाती है लेकिन इसमें एक बात ध्यान रहे कि जिस समय निसर्गज सम्यक्त्व की उपलब्धि हो उस समय भले ही धर्मोपदेश न मिलता हो किन्तु पहले कभी - किसी पूर्वजन्म में उसे यह धर्मोपदेश अवश्य मिला होगा। उस समय उसे यह संम्यक्त्व प्राप्त नहीं हो सका। अब किसी निमित्त से वह धर्मोपदेश उसमें स्वयं ही नैसर्गिक रूप से उभर आया । जैसे सोमिल के हृदय में श्मशान में ध्यानस्थ मुनि गजसुकुमाल के प्रति ९९ लाख भव पहले के वैर बंध के कारण क्रोध की ज्वाला धधक उठी थी । इन दो के अतिरिक्त सम्यक्त्व के दूसरे अनेक भेद हैं। यथा (१) व्यवहार और निश्चय सम्यक्त्व, (२) सराग और वीतराग सम्यक्त्व,
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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