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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पचीस बोल *१०१ * - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - यह यदि अपरिवर्तनशील है तो दूसरी अपेक्षा से परिवर्तनशील है, यानी द्रव्य की अपेक्षा यह नित्य अर्थात् अपरिवर्तनशील है किन्तु पर्याय की अपेक्षा से यह अनित्य अर्थात परिवर्तनशील भी है। इनमें अनन्त परिणमन होता रहता है। जितने प्रकार का परिणमन होता है उतनी ही आत्माएँ हैं, यानी आत्मा की अवस्थाएँ हैं। चूँकि आत्मा परिणामी नित्य है, अतः उसकी अवस्थाएँ परिवर्तित होती रहती हैं। यह परिवर्तन अनन्त है। आत्मा शब्द उन-उन शब्दों का बोधक है। जैनदर्शन में आत्मा को उपयोगमयी, अमूर्तिक, कर्ता-भोक्ता, स्वदेह परिमाण वाला, संसारी, यानीं बद्ध, मुक्त तथा स्वाभाविक ऊर्ध्व गति वाला माना गया है। जैनदर्शन में आत्मा के अस्तित्व को विभिन्न प्रकार से सिद्ध किया गया है। आत्मा हमें दीखता नहीं है। बिना दिखाई दिए आत्मा के अस्तित्व को कैसे स्वीकारा जाए? इस सन्दर्भ में कहा गया है कि यदि कोई पदार्थ दिखाई नहीं दे तो उस पदार्थ का अभाव नहीं माना जा सकता। चूँकि आत्मा का एक लक्षण अमर्त्त है, यानी आत्मा का कोई रूप नहीं है, आकार नहीं है, वर्ण-गंध आदि नहीं है। अतः यह इन्द्रियों के द्वारा ग्राह्य नहीं है। इन्द्रियाँ तो मूर्त पदार्थों का ही ज्ञान या दर्शन करा सकती हैं। जिन पदार्थों को हम आँखों से नहीं देख सकते तो क्या उन पदार्थों का अभाव माना जाए? नहीं, ऐसा नहीं होता। उन पदार्थों को सूक्ष्म से सूक्ष्म यन्त्रों से देखते हैं और जो पदार्थ यन्त्रों से भी नहीं दिखाई देते हैं तो भी उनका अभाव नहीं माना जा सकता। उन्हें हम आत्मीय ज्ञान के अधिक विकसित होने से देख सकते हैं। इन्द्रिय ज्ञान तो पदार्थों के बाहरी स्वरूप की जानकारी देता है और इन्द्रियों से परे जो ज्ञान होता है उसके द्वारा आत्मा के स्वरूप-स्वभाव को जाना जा सकता है। आत्मा का बोध हमें अनुमान से भी हो सकता है, जैसे-हवा। हवा को हम देख नहीं सकते हैं किन्तु स्पर्श के द्वारा हवा का अनुभव कर सकते हैं। ठीक उसी प्रकार हम आत्मा को देख नहीं सकते किन्तु अनुभव एवं ज्ञान-शक्ति से उसे जान सकते हैं। यदि इन्द्रिय ज्ञानरूपी दरवाजे या खिड़कियों को बन्द कर ध्यान और एकाग्रता के साथ आत्म-चिन्तन-मनन करें तो एक न एक दिन हमें आत्मा का अनुभव हो सकता है। __ आत्मा शुभ-अशुभ प्रत्येक कर्म का कर्ता और उसके फल का भोक्ता भी है। शरीर मर सकता है किन्तु आत्मा नहीं। वह पुराने शरीर को छोड़कर नए शरीर में सूक्ष्म शरीर, यानी कार्मण शरीर के द्वारा प्रवेश करता है जिसे
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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