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________________ विवेकचूडामणिः । सोरठा । शंकरचरणदिनेश, मम हियबा रिजकोशको । विकसितकर हमेश, अज्ञानज तम दूर करि ॥ १ ॥ ग्रन्थ निर्विघ्नपरिसमाप्तिके निमित्त ग्रन्थकार श्रीशंकराचार्य स्वाभी गोविन्दनामक निज गुरुको नमस्काररूप मंगलको आचरण करते हैं ॥ (२) सर्ववेदान्तसिद्धान्तगोचरं तमगोचरम् । गोविन्दं परमानन्दं सद्गुरुं प्रणतोऽस्म्यहम् ॥ १ ॥ सम्पूर्ण वेदान्तशास्त्रका जो सिद्धान्तवाक्य है उस वाक्यका विषय और इन्द्रियोंका अगोचर परमानन्दस्वरूप निजगुरुको नमस्कार करता हूं ॥ १ ॥ जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमतः पुंस्त्वं ततो विप्रता तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमस्मात्परम् । आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभवो ब्रह्मात्मना संस्थितिर्मुक्तिर्नो शतजन्मकोटिसुकृतैः पुण्यैर्विना लभ्यते ॥ २ ॥ चौरासी लक्ष योनिभ्रमणकार मनुष्य शरीर होना प्रथम दुर्लभ है दैवयोग से मनुष्य शरीर प्राप्त हुआ तौभी सबकम्मोंका अधिकारी ब्राह्मण होना दुर्लभ है, ब्राह्मण होनेपरभी वैदिक धर्म परायण होना कठिन है, वैदिक धर्म होने पर भी विद्वान होना दुर्लभ है, विद्वानकोभी आत्म अनात्म वस्तुका विवेक अलभ्य है, आत्म अनात्म विवेक से भी स्वयं अनुभव करना दुर्लभ है, अनुभवसेभी मैं ब्रह्महूं ऐसी स्थिति होना दुर्घट है दैवाधीन ये सब होने पर भी कोटिहूँ जन्मके किये हुए पुण्यसमूहकी सहायता बिना मोक्ष होना कठिन है ॥ २ ॥ नापरण ་་་་ྋ་ ན་་་་ ་་ तमोगुणका धर्म व इसका कार्य्य BECO .... ....
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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