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________________ विवेकचूडामणिः । षड्भिरूर्मिभिरयोगियोगिहृद्भावितं न करणैर्विभावितम् । बुद्धयवेद्यमनवद्यमस्ति यद्ब्रह्म तत्त्वमसि भावात्मनि ॥ २५७॥ राग द्वेष आदि छः ऊर्मियोंसे रहित और योगियोंके हृदयसे विचारित और नेत्र आदि इन्द्रियोंके अगोचर और बुद्धिकाभी अविषय ऐसा जो परब्रह्म सो तुम्हीं हो और ऐसाही अपनेको समझो ॥ २५७॥ ( ७० ) भ्रान्तिकल्पितजगत्कलाश्रयं स्वाश्रयं च सदसद्विलक्षणम् । निष्कलं निरुपमानबुद्धि द्रह्म तत्त्वमसि भावात्मनि ॥ २५८ ॥ भ्रान्ति से कल्पित जो जगत् उसका आधार और आत्मभिन्न आधारसे रहित स्थूल सूक्ष्म जगत्से विलक्षण निःकलंक उपमानसे. रहित जो परब्रह्म सो तुम्ही हो ऐसा अपनेको मानो ॥ २५८ ॥ जन्मवृद्धि परिणत्यपक्षयव्याधिनाशनविहीनमव्ययम् । विश्वसृष्टयवविघातकारणं ब्रह्म तत्त्वमसि भावयात्मनि ॥ २५९ ॥ जन्म वृद्धि परिणति अर्थात् स्थूल क्षीण व्याधि नाश इन सबसे बिहीन सदा एक रस संसारकी जो सृष्टि और विनाश इनका कारण जो परब्रह्म सो तुम्ही हौ ऐसाही अपने को समझो ।। २५९ ॥ अस्तभेदमनपास्तलक्षणं निस्तरंगजलराशिनिश्वलम् । नित्यमुक्तमविभक्तमूर्ति यद्ब्रह्म तत्त्वमसि भावयात्मनि ॥ २६० ॥ अस्त आदि दोषसे भिन्न तरङ्गरहित निश्चल जलराशिके समान गंभीर नित्यमुक्त और विभाग से रहित सदा एक मूर्त्ति जो परब्रह्म सो तुम्ही हो ऐसाही अपने को समझो || २६० ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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