SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषाटीकासमेतः। (२५) . मन, बुद्धि, अहंकार, चित्त ये चार अंतःकरण कहे जाते हैं संकल्प , विकल्प होना यह मनकी वृत्ति है पदार्थोंका निश्चय करना बुद्धिका धर्म है अभिमान होना यह अहंकारका धर्म है, विषयोंपर अनुधावन करना चित्तका धर्म है ॥ ९५ ॥ ९६॥ प्राणापानव्यानोदानसमाना भवत्यसौ प्राणः । स्वयमेव वृत्तिभेदाद्विकृतिभेदात्सुवर्णसलिलवत् ९७॥ प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, ये पांच प्राण कहे जाते हैं यद्यपि प्राण एकही है तथापि हृदय, गुदा, नाभि, कण्ठ, सर्वदेह इन स्थानोंपर रहकर वृत्तिभेद होनेसे पांच भेद होते हैं, जैसा सुवर्ण विकारको प्राप्त होनेसे कटक कुंडल आदि अनेक संज्ञाओंको प्राप्त होता है ॥ ९७ ॥ वागादि पञ्च श्रवणादि पञ्च प्राणादि पञ्चाभ्रमुखानि पञ्च । बुद्धयद्याविद्याऽपि च कामकर्मणी पुयष्टक सूक्ष्मशरीरमाहुः ॥ ९८॥ वचन आदि पांच कर्मेंद्रिय, श्रवण आदि पांच ज्ञान इन्द्रिय, प्राण अपान आदि पांच वायु, आकाश आदि पांच तत्त्व बुद्धि आदि चार अंतःकरण, अज्ञान काम कर्म पुर्यष्टक ये सब मिलकर सूक्ष्मशरीर होता है ॥ ९८ ॥ इद शरीरं शृणु सूक्ष्मसंज्ञितं लिंगन्त्वपञ्चीकृतभूतसंप्लवम् । सवासनं कर्मफलानुभावकं स्वाज्ञानतोऽनादिरूपाधिरात्मनः ॥ ९९ ॥ पंचीकरणके विना आकाश आदि पंचतत्त्वसे उत्पन्न पूर्ववासनाके सहित कर्म फलकी इच्छा करता हुआ जो आत्माका अनादि उपाधि है उसीको लिङ्ग शरीर कहते हैं ॥ ९९॥ .
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy