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________________ देवीपुराण परिचय शाक्त मत की प्राचीनता: - भारत में देवीपूजा का इतिहास काफी पुराना है । सिंधु सभ्यता के अवशेषों एवं वैदिक संहिताओं में भी इसके प्रमाण उपलब्ध होते हैं । परन्तु एक ब्रह्मस्वरूपा देवी का विकास, जिससे सभी देवियां प्रादुर्भूत होती हैं परवर्ती काल की देन है । देवी सम्बन्धी पुराण और उपपुराण भी काफी अर्वाचीन माने जाते हैं। प्राचीन महापुराणों में यद्यपि देवी के माहात्म्य, व्रत एवं उत्सव आदि के सम्बन्ध में सामग्री तो प्राप्त होती है परन्तु स्वतन्त्ररूप से ये कृतियां शाक्त मत का प्रतिपादन नहीं करती हैं। परवर्ती काल में ही देवी पुराण कालिका पुराण, महाभागवत एवं देवीभागवत आदि उपपुराण लिखे गये जिनमें मुख्य रूप से देवी स्वरूपों का वर्णन, महोत्सव, पीठ, प्रत आदि का विस्तार से वर्णन हआ है। इन ग्रन्थों में किसी एक देवी को मुख्य मान कर शेष रूपों का अवतार रूप में वर्णन किया जाता है। ये पुराण शाक्तमत एवं उसके प्रचार प्रसार का विस्तार से वर्णन करते हैं। .. इनके अतिरिक्त भी कुछ पुराण हैं—बृहद्धर्म पुराण एवं भविष्योत्तर पुराण आदि जिनमें कुछ अध्याय देवी पूजा पर विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करते हैं । इसके अलावा कुछ ऐसी भी कृतियां हैं जिनके शक्तिसम्बन्धी श्लोक निबन्धकारों द्वारा अपने अपने ग्रन्थों में उद्धृत किये गये हैं परन्तु उनका बहुत-सा भाग अभी तक प्रकाशित पुराण ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं होता है। इन कृतियों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि देवी के जिस स्वरूप का विकास हो रहा था उस पर वैदिक देवताओं की झलक बहुत अधिक पड़ी हुई है। भू-देवी पृथ्वी, देवमाता अदिति, सूर्यवधू उषा, सरस्वती, वाग्देवी, इला, श्री आदि वैदिक देवियों के मूलरूप को ही आधार मानकर परवर्ती काल में महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती आदि देवीस्वरूपों में विकसित किया गया है। फिर भी जो रूप आज प्राप्त १. मार्कण्डेय पु० वामन; वराह, आदि-आदि । २३
SR No.002465
Book TitleDevi Puranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpendra Sharma
PublisherLalbahadur Shastri Kendriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year1976
Total Pages588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L015
File Size11 MB
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