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________________ भूमिका जैन धर्म अध्यात्म प्रधान धर्म है। कषायों और कर्मो की कालिमा को दूर कर आत्मा को परमात्मा बनाना ही जिनधर्म का उद्देश्य है। तीर्थंकर परमात्मा इस विश्व की अलौकिक-अद्वितीय विभूति होते हैं। उनके हृदय में संसार की प्रत्येक आत्मा के प्रति अपार करुणा होती है। शाश्वत सुख से युक्त सिद्ध अवस्था ही अव्याबाध और अक्षय सुख है। संसार में जन्म-जरा-मृत्यु के निरन्तर बंधन दुख रूप होते हैं। तीर्थंकर इस तथ्य की साक्षात् अनुभूति करते हैं एवं विश्व के सभी जीवों को मोक्षमार्ग से जोड़ने की प्रबलतम भावना रखते हैं। किंतु सभी गतियों के जीवों का पुण्य एक जैसा नहीं होता। गतियाँ चार होती हैं - नरक गति, तिर्यच गति, देव गति एवं मनुष्य गति। नरक गति के जीव परमात्मा की वाणी न सुन सकते हैं, न पढ़ सकते हैं। तिर्यच गति के जीव परमात्मा की वाणी सुन तो सकते हैं, लेकिन पूरी तरह समझ नहीं सकते। देवगति के जीव परमात्मा की वाणी सुन-पढ़ तो सकते हैं, समझ भी सकते हैं लेकिन पूरी तरह आचरण (पालन) नहीं कर सकते क्योंकि वे व्रत, नियम पच्चक्खान ग्रहण नहीं कर सकते। केवल मनुष्य गति के जीव ही ऐसे पुण्य के धनी हैं जो परमात्मा की वाणी सुन-पढ़ भी सकते हैं, समझ भी सकते हैं एवं आचरण कर सिद्धत्व को प्राप्त भी कर सकते हैं। तीर्थंकर परमात्मा 'तीर्थंकर' इसीलिए कहलाते हैं क्योंकि वो तीर्थ की स्थापना करते हैं। साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका-इस चतुर्विध संघ को तीर्थ कहते हैं। परमात्मा शासन को स्थापित करते हैं एवं आचार्य आदि साधु-साध्वी जी शासन का संवहन करते हैं, आगे बढ़ाते हैं। इस संघ का नेतृत्त्व करने वाले गुरुदेवों की परम्परा को पाट परम्परा कहा जाता है। वर्तमान शासन चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी जी का है। अतः वर्तमान में भगवान् महावीर की पाट परम्परा गतिमान है, ऐसा कहा जा सकता है। प्रत्येक तीर्थंकर के विरह (अभाव) में उनकी परम्परा चलती है। भगवान् ऋषभदेव जी के निर्वाण के पश्चात् उनकी पाट परम्परा का विस्तार हुआ। तत्पश्चात् श्री अजितनाथ जी द्वारा तीर्थ स्थापना के पश्चात् उनका शासनकाल चला। उसी तरह जब पार्श्वनाथ जी को केवलज्ञान हुआ, उनके द्वारा चतुर्विध संघ vii
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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