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________________ बाद मार्गशीर्ष सुदी 5, सोमवार, वि.सं. 1981 में लाहौर में प्रतिष्ठा के अवसर पर चतुर्विध संघ की साक्षी से आचार्य पद प्रदान किया गया एवं गुरु आत्म के पट्टधर के रूप में अलंकृत किया गया। आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. ने विविध योगों द्वारा जिनशासन की महती प्रभावना की। उनमें तपयोग की विशिष्ट तेजस्विता थी। वे प्रायः एकासना ही करते थे एवं उसमें भी 8 द्रव्य ही वापरते थे। बारह तिथियों को वे मौन व्रत स्वीकार करते थे। शासन के कार्यों के लिए समय-समय पर उन्होंने दूध व दूध की वस्तुओं का त्याग आदि अनेक अभिग्रह किए। गुरु आत्म की इच्छा अनुरूप उन्होंने स्थान-स्थान पर शिक्षा व ज्ञान के केन्द्र स्थापित कराए। जैसे___ - श्री महावीर जैन विद्यालय (मुंबई, बड़ौदा, अहमदाबाद, पूना) - - श्री आत्मानंद जैन पाठशाला (अंबाला शहर, वेरावल, खुडाला) -- श्री आत्मानंद जैन हाईस्कूल (लुधियाना, मालेरकोटला, अंबाला, बगवाड़ा) - श्री आत्मानंद जैन लायब्रेरी (अमृतसर, पूना, जूनागढ़, वेरावल, अंबाला) - श्री हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञान मंदिर (पाटन, गुजरात) - श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर (वरकाणा, राजस्थान) - श्री आत्मानंद जैन कॉलेज (अंबाला, मालेरकोटला) - श्री आत्मानंद जैन गुरुकुल (गुजरावाला, पाकिस्तान) इत्यादि अनेकानेक गुरुकुल, पाठशाला, स्कूल, कॉलेज, वाचनालय, औषधालय, गुरुदेव की पावन प्रेरणा से स्थापित किए गए। अनेकों व्यक्तियों ने उनके इस सुकृतों का घोर विरोध किया, किंतु गुरु वल्लभ न ही कभी विचलित हुए एवं न ही कभी अपने निर्मल संयम धर्म पर कोई आंच आने दी। युगवीर, समयज्ञ आचार्य विजय वल्लभ सूरि जी ने शासन की प्रभावना के उद्देश्य से अनेक क्रांतियों का सूत्रपात किया। उन्होंने साध्वी समुदाय को सामूहिक रूप में प्रवचन एवं कल्पसूत्र महावीर पाट परम्परा 275
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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