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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 93 जिज्ञासा - तीर्थंकर परमात्मा जब दीक्षा पश्चात् ध्यान करते हैं, तब उनका ध्येय क्या रहता है ? समाधान - किसी भी साधक के लिए ध्येय अत्यावश्यक है। तीर्थंकरों का मुख्य ध्येय उनकी आत्मा ही है, क्योंकि व स्वयं अपनी आत्मा के वैराग्य मार्ग में प्रविष्ट होकर स्वयं का ही ध्यान करते हैं। इसके अतिरिक्त . ऊर्ध्वलोक के द्रव्यों को साक्षात् करने के लिए ऊर्ध्व-दिशापाती ध्यान . अधोलोक के द्रव्यों को साक्षात् करने के लिए अधो-दिशापाती ध्यान • ति लोक के द्रव्यों को साक्षात् करने के लिए तिर्यदिशापाती ध्यान • संसार, संसार हेतु और संसार परिणाम-कर्म विपाक • मोक्ष, मोक्ष हेतु और मोक्ष सुख, आत्म-परम समाधि _ इत्यादि ध्यान में मग्न रहते हैं। नासिका के अग्रभाग पर (आज्ञाचक्र के समीप) | नेत्रों को स्थिर रखकर वे ध्यान चिन्तन करते हैं। आचारांग चूर्णि में लिखा है कि 'अरिहंत कभी बाह्य पुद्गलों - बिंदुओं पर दृष्टि को स्थिर रखकर अनिमेष नयन से ध्यान भी करते हैं व आन्तरिक भावों द्वारा ध्यान में द्रव्य-गुण-पर्याय के नित्य-अनित्य आदि का चिंतन तथा स्थूल सूक्ष्मादि पदार्थों का ध्यान व आत्मनिरीक्षण करते हैं। __ जिज्ञासा - तपस्या द्वारा किस प्रकार तीर्थंकर कर्मक्षय करते हैं? । समाधान - तीर्थंकर तप करते नहीं, उनसे तप हो जाता है। आत्मभाव की तन्मयता में देहभाव को भूल जाना तप है। मैं अट्ठम करूँ, मासक्षमण करूँ, ऐसे निश्चय से वे तप नहीं करते। कर्मों के अनुसार तप होता है। आचारांग नियुक्तिकार तप अनुष्ठान द्वारा कर्मग्रन्थि भेदन का उपादान जानकर 12 प्रकार की क्रियाओं की प्रधानता दर्शाते हैं यथाअवधूनन (कर्मग्रन्थि भेद का उपादान जानना), धूनन (भिन्न ग्रन्थिवाले का सम्यक्त्व में रहना), नाशन, विनाशन, ध्यापन, क्षपण, शुद्धीकरण, छेदन, भेदन, स्फेटन, दहन व धावान जिनकी गूढ विवेचना शास्त्रों में प्राप्त होती है। तप द्वारा उत्तरोत्तर कर्मों का क्षय होता पादपोपगमन (पादप यानी वृक्ष, उपगमन यानी प्राप्त करना) अर्थात् वृक्ष की तरह स्थिर रहकर अनशन इत्यादि तपश्चर्या से मनोयोग, वचनयोग व काययोग का पूर्णतः निरोध वे करते हैं व कर्मों का क्षय कर आत्मा को हल्की कर शाश्वत सिद्धिगति में जाते हैं।
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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