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________________ ब्रा० - मेरा निवास स्थान यहां हो है और मैंने अभ्यास व्याकरण, काव्य, अलङ्कार आदि सब ही शास्त्रों का किया है। जि० - ठीक है, परन्तु विशेष रूप से किस विषय का किया है ? 0 ब्रा० - ज्योतिष का । 10 जि० - चन्द्र और आदित्य के लग्नों के विषय में आप क्या जानते हैं ? ब्रा० - इसमें क्या है ? बिना गणना किये ही एक दो या तीन लग्नों का प्रतिपादन कर सकता हूँ । जि० - बहुत सुन्दर ज्ञान है । ब्रा० - लग्न के विषय में क्या आप भी कुछ जानते हैं ? जि० - हां कुछ थोड़ा सा । ब्रा० - अच्छा, तो आप कुछ कहें । जि० - भूदेव ! आप बतलाइये, मैं दस या बीस कितने लग्नों का प्रतिपादन करू ? | यह बात सुनकर ब्राह्मण आश्चर्यचकित हो गया और उसके आश्चर्य का तो ठिकाना ही न रहा, जब उन्होंने शीघ्र गणना करके उन लग्नों को बतला दिया। इसके बाद गणिजी आकाश की ओर संकेत करके बोले - "विप्रवर ! देखो वह आकाश में दो हाथ का जो मेघ-खण्ड दिखाई पड़ता है, क्या आप बता सकते हैं कि उससे कितनी वर्षा होगी ?" ब्राह्मण बेचारा हतप्रभ हो गया। उसको निरुत्तर देख कर गणिजी ने बतलाया कि वह मेघखण्ड दो घड़ी के भीतर सम्पूर्ण गगनमण्डल में व्याप्त होकर इतनी जल-वृष्टि करेगा कि दो "भाजन" भर जायेंगे । सचमुच ऐसा हुआ भी। इसके परिणाम स्वरूप वह ब्राह्मण जब तक. वहां रहा तब तक उनके चरणों की वन्दना करके ही भोजन करता था । षटुकल्याणक प्ररूपणा और विधि-चैत्यों को स्थापना जिनवल्लभगणि जैन सिद्धान्त के कितने मर्मज्ञ थे और उसका प्रतिपादन वे कितने निर्भय होकर करते थे; इस बात का प्रमाण उनके द्वारा की गई छठे कल्याणक की प्ररूपणा में मिलता है । साधारणतया प्रत्येक तीर्थंकर के निम्नलिखित पाँच कल्याणक माने जाते हैं :१. देवलोक से च्युत होकर माता के गर्भ में प्रवेश करना। २. जन्म ग्रहण करना । ३. संसार से विरक्त होकर प्रव्रज्या ( दीक्षा ) ग्रहण करना । ४. तपश्चर्या द्वारा केवलज्ञानकेवलदर्शन प्राप्त करना । ५. निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त करना । भगवान् महावीर के विषय में यह विशेष माना जाता है कि पहिले उन्होंने देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में प्रवेश किया और वहाँ से उस गर्भ को इन्द्र-आदेश से हरिणगमेषी देव द्वारा महारानी त्रिशला के गर्भ में लाया गया । सूत्रग्रन्थों में जैसा कि आगे बतलाया गया है. इस गर्भापहरण को भी उपर्युक्त पाँच के समान ही एक कल्याणक माना गया है। जिनवल्लभगणि कल्पसूत्रादि के पाठ पर सम्यग् विमर्श कर इसको छठा कल्याणक प्रसिद्ध किया । अन्य पाँच कल्याणकों के उपलक्ष में तो उस समय चैत्यवासी लोग भी एक उत्सव मनाकर भगवान् की पूजा किया करते थे, परन्तु गर्भापहरण नाम का कल्याणक तत्कालीन जनता में विस्मृत हो ४६ ] [ वल्लभ-भारती.
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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