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________________ I बाद उसका सम्बन्धी कुमारपाल राज्य सिंहासन पर आसीन हुआ । कुमारपाल के बाद सिद्धराज की कीर्ति को अक्षुण्ण रखने वाला कोई शासक पाटन में नहीं हुआ । सोलंकी वंश के शासन को उन्नत बनाने का श्रेय शासकों से अधिक उनके योग्यतम मंत्रियों संपत्कर, विमलशाह, उदयन मेहता, दामोदर मेहता, मुञ्जाल मेहता, वाग्भट्ट, शान्त मेहता आदि को है । ऐतिहासिक का कथन है कि ये तत्कालीन भारत के प्रसिद्धतम राजनीतिज्ञ थे और इनकी समानता प्राचीन भारत के राज्य संस्थापकों चाणक्य और यौगन्धरायण आदि से की जा सकती है। यदि इनको आन्तरिक झगड़ों से अवसर मिलता तो संभवतः ये बाह्य आक्रमणों से देश को त्राण दिलाने का प्रयत्न भी कर पाते । इस समय आबू, किराडू, जालोर, मालवा व बागड़ में परमार वंश के शासक राज्य करते थे । बागड़ के परमारों की राजधानी अर्थ णा या उच्छूणक नगर थी । ये मालवे के परमारों के निकटतम सम्बन्धी थे । सन् १९०० ई० के लगभग चामुण्डराज यहां का शासक था, उसने सिन्धुराज (संभवत: सिन्ध के राजा) और कन्ह के सेनापति को हराया था। चामुण्डराज के पुत्र विजयराज के बाद इस वंश का कोई इतिहास नहीं मिलता । चामुण्डराज और विजयराज का सान्धिविग्रहिक वामन भी अपने समय का प्रसिद्ध राजनीति-विशारद था । १ किराडू का परमार उदयराज सिद्धराज का सामन्त था और सिद्धराज की कई विजयवाहिनियों में उपस्थित था । उदयराज के पुत्र सोमेश्वर ने 'मरुभूमि' के राजा जज्जक पर विजय प्राप्त करके उससे तृणकोट और नवसर के किले छीन लिये थे। आबू के परमारों में धरणीवराह व घून्धूक बड़े वीर हुए। धून्धूक भीमदेव सोलंकी का समकालीन था । आबू के दण्डनायक विमलशाह ने घून्धूक का भीमदेव से मेल करा दिया । उसके उत्तराधिकारी पूर्णपाल और कृष्णराज हुए। कृष्णराज (द्वितीय) भीनमाल, किराडू और वसन्तगढ़ का स्वामी हुआ। उसे भीमदेव ने कैद कर लिया था। बाद में यह भीमदेव का मित्र बन गया । ध्रुवभट, रामपाल आदि उसके उत्तराधिकारी हुए । परमारों की मुख्यशाखा मालवा पर शासन करती थी । चित्तौड़ भी उस समय मालवा के अधिकार में था । इस राज्यवंश के सबसे प्रतापी शासक मुञ्जदेव (वाक्पतिराज) सिन्धुराज और भोज देव थे । मुञ्जदेव ने कर्णाट के राजा तैलप को कई बार परास्त किया था, किन्तु अन्त में उसी के द्वारा कैद होकर मारा भी गया । मुञ्जदेव विद्वानों का आश्रयदाता था । उसकी राज्यसभा में तिलक मंजरी का रचयिता धनपाल, पद्मगुप्त (परिमल), धनजय, धनिक, हलायुध, अमितगति आदि अनेक विद्वान् रहते थे । वह स्वयं विद्वान् था । उसके कुछ श्लोक ही अब तक मिल पाये हैं। मुञ्ज के उत्तराधिकारी सिन्धुराज १. भारत के प्राचीन राजवंश : पं० विश्वेश्वरनाथ रेउ २. किराडू का शिलालेख : प्रोभाजी का राजपूताने का इतिहास पृ० १८३ ३. सोलंकियों का प्राचीन इतिहास : प्र० भा० पृ० ७५-७७ । वल्लभ-भारती ] [ ७
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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