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________________ परिशिष्ट ; २. 5] नेमिचन्द्र भण्डारी विरचित जिनवल्लभसूरि गुरुगुणवर्णन परणमवि सामिय वीरजिण, गरगहर गोयम सामि । असमत्थु । सकयत्थो || ३ || सुधर्मसामिश्रन लगि सरणि जुगप्रधान सिवगामि ||१|| तित्थुधरणु सु मुणिरयण, जुगप्रधान क्रमि पत्तु । जिणवल्लहसूरि जुगपवरो, जसु निम्मलउ चरित्तु ॥२॥ तसु सुहगुरु गुण कित्तराइ, सुरराउ तो भक्त्तिब्भर तरलियउ कह हंउ कह भवसाय र दुहपवर, कह हि जिणवल्ल हसूरिवयरणु, जागउ कह सबोहि मणु उल्लसिङ, कह जुगसमला नाएग मई, पत्तउ जिरणवल्लभसूरि सुहगुरह, बलि कि जसु वयणेण विजातीयए, तुट्टइ मूढा मिल्हहु मूढ पहु, लग्गहु सुद्धइ जो जिणवल्लहसूरि कहिउ, गच्छउ जिम थिर माइ पिय बंधव, अथिर रिद्धि जिगवल्लहसूरि पय नमउ, तोडउ भवदुपासु || परमपराइ न के वि गुरु, निम्मल धम्मह हुति । सव्वि ति सुहगुरु मन्नियहि, जे जिणक्यरण 'गुरु गुरु' गायवि रंजियहि, मूढउ लोउ न मुराइ जं जिस आारण विणु, गुरु हुइ सत्सु जिम सररणाइय मारसहं, कोई करइ न मुराइ जं जिल-भासियउ, तिम कुकुरह हुड - विसप्पिणि भसम गहु, दूसम कालु जिणवल्लहसूरि भडु नमहु, जिणिउ सत्तु जा जहि कुलगुरु श्रावियउ, ते तहि विरला जोइवि जिरणवयण, जहि गुण तहि रचंति ||१३|| हा हा दूसमकाल बलु, खल वक्कत्तरण जोइ । नामेरिणय सुविहिय तराइ, मित्तु वि वयरीय होइ || १४ || मिलति ॥ १ ॥ श्रया । समाणु ॥ १० ॥ सिरछेउ । भक्ति करत । वि कहि पसउ मयसु । समय पवित्त ॥४॥ सुद्धउ सम्मत्तः । जिविह-तत्तु ॥५॥ जिसु मुरराय । कुमय - कसाय ॥ ६ ॥ घम्मि । सिवरम्मि ॥७॥ गिहवासु । संजोउ ।। ११ ।। कलिट्ठ । निसि || १२ || [ वल्लभ-भारती
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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