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________________ आपके प्रणीत जो अन्य टीका-ग्रन्थ प्राप्त होते हैं, उसकी तालिका निम्नलिखित है:१. दिङ नाग प्रणीत न्यायप्रवेश, हारिभद्रीय वृत्ति पर पञ्जिका सं० ११६६ : २. महत्तर जैनदासीय निशीथचूर्णी पर विंशोद्देशक व्याख्या सं० ११७३ ३. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र वृत्ति सं० १२२२, ४. नन्दीसूत्रटीका दुर्गपदव्याख्या ५. जीतकल्पबृहच्चूणि व्याख्या सं० १२२७, ६. निरयावलीसूत्र वृत्ति सं० १२२८ ७. चैत्यवन्दन सूत्र वृत्ति ८. सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय ६. प्रतिष्ठाकल्प १०. सुखबोधा समाचारी ११. पिण्डविशुद्धिवृत्ति सं० ११७८ १.. पद्मावत्यष्टक वृत्ति आपका साहित्य सर्जन-काल ११६६ से १२२८ तक का है। पिण्डनियुक्ति आदि शास्त्रों का अवलोकन कर सं० ११७८ कार्तिक कृष्णा ११ रविवार, देवकुलकपाटक ( देलवाड़ा ) में चातुर्मास की स्थिरता करते हुए, ४४०० श्लोक प्रमाण की पिण्डविशुद्धि प्रकरण पर टीका की रचना आपने पूर्ण की है: दोषानुसङ्गरहितं सवृत्तं जाड्यजितं सकलम् । समभूदिह चान्द्रकुलं स्थिरं सदाऽऽपूर्वचन्द्रसमम् ॥१॥ तस्मिन् गुणमणिरोहणगिरिकल्पाः शीलभद्रसूर्यास्याः । प्रभवन्ति हि तु मुनीन्द्रा विशालमतय. सदाकृतयः ॥२॥ प्रौदार्यस्थैर्यगाम्भीर्य-धैर्यरूपादिसंयुताः। समभवन् सुशिष्यास्ते श्रीधनेश्वरसूरयः ॥३॥ x शास्त्रं पिण्डविशुद्धिसजितमिदं श्रीचन्द्रसूरिः स्फुटं, तवृत्ति सुगमां चकार तनुधी श्रीदेवतानुग्रहात् ॥७॥ पिण्डनियुक्तिसच्छास्त्रवृद्धव्याख्यानुसारतः । मालिकेर्यादिसवृक्षे श्रीदेवकुलपाटके ।। बसुमुनिरुद्र जति विकमवर्षे रवी समाप्येषा । कृष्णकादश्यां कात्तिकस्य योगे प्रशस्ते च ॥ प्रस्यां चतुःसहस्राणि शतानां च चतुष्टयम् । प्रत्यक्षरप्रमाणेन श्लोकमानं विनिश्चतम् ॥१४॥ प्रस्तुत टीका अन्य समग्र टीकाओं की अपेक्षा श्रेष्ठ है। इसकी व्याख्या तो संस्कृत में है और उदाहरण प्राकृत भाषा में; जो इनके प्राकृत भाषा के सौष्ठव को सूचित करते हैं। वस्तु का विवेचन भी परिमार्जित किन्तु सरल भाषा में आपने विस्तार से किया है। साथ ही अनेकों दृष्टान्त देकर वस्तु को उपादेय बना दिया है। इस टीका की रचना आचार्य जिनवल्लभ के स्वर्गारोहण (११६७) के ११ वर्ष पश्चात् की गई है। इसी को लक्ष्य में रख कर पन्यास मानविजय ने इस ग्रन्थ की भूमिका में १५.] [वल्लभ-भारती
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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