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________________ ज्ञानतिथि पौ० शु० १५ पौ० शु०६ चै० शु० ३ का० शु०१२ मार्ग० शु०११ फा० कृ० १२ मार्ग० शु०११ आश्विन कृ०१५ चै० कृ०४ वै० शु०१० प्रायुष्य निर्वाणतिथि निर्वाणस्थान १० लाख वर्ष । ज्ये० श०५ | ज्ये० शु०५ । सम्मेतशिखर ज्ये० शु०१३ । ६५ हजार , वै० कृ०१ मार्ग शु० १० फा० शु० १२ ज्ये० कृ०६ वै० कृ १० प्रा० शु० ८ गिरनार सौ वर्ष श्रा० शु० ८ सम्मेत शिखर ७२ वर्ष का० कृ० १५ | पावापुरी २२. चतुर्विंशति-जिन-स्तुतयः स्तुति 'थुई' की परम्परानुसार प्रथम पद्य में नाम विशेष तीर्थकर की, द्वितीय पद्य में सामान्य जिनेश्वरों के गणों की ततीय पद्य में जिनागम-जिनवाणी की और चतर्थ पद्य में श्रु तदेवता या तीर्थंकर के शासन देवता की स्तवना की जाती है। इस मान्यता के अनुसार स्तुति-साहित्य के सर्वप्रथम सर्जकों में संस्कृत भाषा में रचना करने वाले महाकवि धनपाल के अनुज श्री शोभनमुनि और प्राकृत भाषा में गुम्फन करने वाले आचार्य जिनवल्लभ हैं । परवर्ती स्तुतिकार कवियों के प्रेरक ये दोनों आचार्य ही हैं। ६६ वें गाथा की 'चतुर्विंशति-जिन-स्तुतयः' नामक लघु कृति में ४-४ गाथाओं में प्रत्येक तीर्थङ्कर की स्तुति की गई है। इन २४ स्तुतियों में उक्त परम्परा का पालन तो किया ही गया है। साथ ही प्रत्येक स्तुति के प्रथम पद्य में तीर्थंकर-नाम के साथ, छह अन्य वर्ण्यविषयों का भी समावेश किया गया है, जो इन स्तुतियों का वैशिष्ट्य है। ये ६ वर्ण्य-विषय . निम्न हैं:-१. तीर्थंकर की माता का नाम, २. पिता का नाम, ३. लक्षण, ४. शरीर का देहमान, ५. जिस देवलोक से च्यूत होकर माता के गर्भ में आये उस देवलोक का नाम और ६. जिस नक्षत्र में देवलोक से च्यूत होकर माता के गर्भ में आये उस नक्षत्र का नामः तीर्थकरनाम मातृनाम पितृनाम लक्षण धनुष्काय देवलोक च्यवन नक्षत्र श्रुत देवता ऋषभ मरुदेवी नाभि वृषभ ५०० सर्वार्थसिद्ध उत्तराषाढा सरस्वती अजित विजया जितशत्रु ४५० विजय रोहिणी रोहिणी सम्भव सेना जितारि ४०० ग्रेवेयक मृगशिरा प्रज्ञप्ति अभिनन्दन सिद्धार्था संवर कपि ३५० जयन्त पुनर्वसु वज्रशृखला सुमति मङ्गला मेघ क्रोंच ३०० मघा वज्रांकुशी पद्मप्रभ सुसीमा धर कमल २५० ग्रैवेयक चित्रा अप्रतिचक्रा सुपार्श्व पृथिवी प्रतिष्ठ स्वस्तिक २०० विशाखा पुरुषदत्ता चन्द्रप्रभ लक्ष्मणा महसेन चन्द्र १५० वैजयन्त अनुराधा काली .. ११४ ] [ वल्लभ-भारती
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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