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________________ उल्लासिक सोत्रम् ॥ कीर्तन करूंगा ( जैसे चिन्तामणिकी थोडीभी स्तुति करनेसे बहुत फलमिलताहै वैसेही भगवकीर्तन थोडाभी करनेसे बहुत फलदेनेवाला होताहै ) अथवा इस विचारसे क्या फलहै? इन अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीकी बिचारमें न आनेवाली अनन्तशक्तिसे मेरे सब वांछित शीध्रही निश्चयसे फलीभूत होंगे. ॥ गाथा ॥ सयलजयहियाणं नाममित्तेण जाणं ॥ विहडइ लहु दुठ्ठानिदोघट्टघट्टम् ॥ नमिरसुरकिरीइग्घिठ पायारविन्दे ॥ सययमजिअसंती ते जिणिन्दे भिवन्दे ॥४॥ (छाया) अहं नम्रसुरकिरीटोघृष्टपादारविन्दौ तौ अजितशान्ति नामानौ जिनेन्द्रौ सततं अभिवन्दे सकल जगद्वितयोः ययोः नाममात्रेण दुष्टानिष्टदोघट्टघट्ट लघु विघटते. ___(पदार्थ) ( नमिर ) नम्र ('सुर ) देवताओंके ( किरीड ) मुकुटोंसे ('अग्घिट्ट) उत्तेजितहै ( पायारविन्दे ) चरणकमलजिन्होंके ऐसे (ते ) बे ( अजिअसंती )
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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