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________________ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ (छाया) अरतिरतितिमिरविरहितं उपरतजरामरणं सुरासुरगरुड भुजगपतिप्रयतप्रणिपतितं सुनयनयनिपुणं अभयकरं अपिच भुविजादविजमाहतं अजितं शरणं उपसृत्य सततं उपनमे । ( पदार्थ) ( अरइ ) असंयममें अरति ( रइ) संयममें रति ( तिमिर ) अज्ञान इनसे ( विरहिअं) रहित (उवरय) निवृत्तहैं ( जरमरणं ) जरा और मरण जिनका ( सुर) देव .( असुर ) असुरकुमार (गरुल ) सुपर्णकुमार ( भुक्ग ) नागकुमार इन्होंके (वइ) पति इन्द्रने ( पयय ) सम्यक्प्रकारसे ( पणिवइअं) प्रणिपातकिया है जिनको अथवा ( सुर ) देव ( असुर ) भवनपति (गरुड ) ज्योतिष्क ( भुक्ग ) व्यंतर (या) विद्याधर इन्होंके ( वइ) स्वामी उनसे ( पयय) सम्यकप्रकारसे ( पणिवइअं) नमस्कृत ऐसे, ( सुनय ) शोभन नैगमादि सप्तनयोंके ( नय) स्वीकारकखाने में (निउणं) चतुर ( अभयकरं ) अभयकरनेवाले ( अविअ ) और भी (भुविज ) मनुष्योंसे (दिविज) देवताओंसे (महिअं)
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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