SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कामलताकी कथा। उपचार किया गया; पर किसीसे राजकुमारीको आराम नहीं पहुँचा । वहीं कोई एक जैनी खड़ा हुआ था। उसने पूछा-अच्छा महाराज! यह तो बतलाइए कि कुमारी गई कहाँ थी ? कुमारीकी एक सखीने कहा कि हम सब गई तो कहीं नहीं थीं; पर मार्गमें एक जिनमन्दिरको देखकर अवश्य आई हैं। वहीं पर इसकी यह दशा हो गई । उस जैनीने फिर पूछा कि इसने वहाँ कुछ बुराई-जिनभगवानकी निन्दा वगैरह तो नहीं की थी? क्योंकि जिन्हें जिनधर्म पर विश्वास नहीं होता वे प्रायः जिनप्रतिमा, जिनमुनि आदिके बाह्य चिह्नको देख कर उनकी निन्दा कर बैठते हैं। उसकी सखी स्पष्ट बातके बतानेमें पहले तो जरा हिचकी । पर फिर बातको दबा देनेसे विशेष लाभ न समझ उसने स्पष्ट कह दिया कि इसने जिनप्रतिमा तथा मुनिकी निंदा तो अवश्य की है । सुन कर उस जैनीने कहा-बस तो यह सब उसी निंदाका फल है। नहीं तो एकदम यह ऐसी कैसे हो जाती । तब राजाने कहाजो होना था वह तो हो गया । अब बतलाओ कि क्या करना चाहिए ! इस पर श्रावकने कहा-राजकुमारीको पीछी मुनिराजके पास लिवा ले जा कर जिनदेव तथा मुनिराजकी पूजन करवाइए और मुनिराजसे अपराध क्षमा करा कर उनसे इसका उपाय पूछिए । फिर वे जो कहें वैसा ही कीजिए। ___ इसके बाद महाराज उसी समय राजकुमारीको जिनमन्दिर ले गये। वहाँ उन्होंने उसके साथ साथ जिनभगवानकी पूना की, पंचामृताभिषेक किया, गरीबोंको दान दिया, अनाथोंकी सहायता की। इसके बाद वे मुनिराजके पास गये और उन्हें प्रणाम कर बोलेभगवन् ! इस बालिकाकी रक्षा कीजिए । इसने बिना समझे-बझे आप
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy