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________________ तित्योगाली पइन्नय ] [ ५६ तं तुब्भेवि सपरियणा, आयरितएण गहिय नेवत्थ ।' अण्वेह' देवराए, सविमाण गया सह वियहिं ।१९५॥ (तद् यूयमपि सपरिजनाः. आर्यत्वेन गृहीत नेपथ्याः । अन्वीहस्व देवराजान् , स्व विमानगताः सह वियता) इसलिये परिजन सहित आप सब भी ऐसे अवसरों पर परम्परा से चले आ रहे अपने आचार-व्यवहार के अनुरूप वेष धारण कर अपने अपने विमान पर प्रारूढ हो आकाश में साथ साथ इन्द्रों का अनुगमन करें" ।१६५। तो ते सुरवरवसभा, वयणं सोऊण नेगमेसीणं । जाणविमाणारूढा, सक्कविमाणा समोसरिया ।१९६। ततः ते सुरवग्वषभाः, वचन श्रुत्वा नैगमेषीनाम् । यान विमानारूढाः, शक्रविमानात् समवसनाः ।) - हरि नैगमेषी देवों के वचन सुनते हो वे सब श्रेष्ठ देवतागण अपने अपने यानों एवं विमानों पर आरूढ हो इन्द्रों के विमानों से बाहर निकल एकत्रित हुए।१६६। अह वासवावि सव्वे, उत्तर वे उब्बिए करिय रूवे । एरावयधवलविसं, कय जयसदा समारूढा ।१९७ (अथ वासवा अपि सर्वे, उत्तरविकुर्विताः कृतरूपाः । ऐरावत धवल वर्ष, कृतजयशब्दा समारूढाः ।) तदनन्तर उत्तर वैक्रिय लब्धि द्वारा रूप बनाये हुए वे इन्द्र भी जयघोष करते हुए ऐरावत एवं श्वेत वृषभ पर आरूढ रोहेंति दो वि सक्का, उत्तर वे उब्विएहिं पण्णासं । पण्णासं दससु वि, खेते सु एंति दुइयं ।१९८।। १ नेवत्थ-नेपथ्य-न० । वेषे, · वेसो नेवत्थं ।' को गा० २३३ । स्त्रीपुरुषाणां वेष, स्था., ४ ठा. २ उ. । निर्मलवेषे, ज्ञात., श्रु. १ अ. १६ २ मणह-प्राशा पालयत: - इत्यर्थोऽपि संभाव्यते ।।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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