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________________ (३०) जैन जाति महोदय. विद्वानों की राऐं भी जैन धर्म की प्राचीनता और महत्ता को सिद्ध करती हैं। ____ इसी खण्ड के दूसरे प्रकरण में वर्तमान अवसर्पिणी के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव स्वामी से चरम तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी का संक्षिप्त जीवन चरित वर्णन किया गया है । इन के जीवन की चर्या को मनन पूर्वक पढ़ने से पाठकों के हृदय में जैन धर्म के प्रति विशेष श्रद्धा उत्पन्न हुए बिना न रहेगी। अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जीवन चरित कुछ अधिक विस्तार से इस कारण दिया गया है कि इन्हीं के शासन में इन के जीवन की झलक आज तक प्रकट हो रही है। इसी खण्ड के तीसरे प्रकरण में इतिहास प्रसिद्ध तेवीस वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ स्वामी के पटधर आचार्यों का विस्तृत विवरण है । आचार्य स्वयंप्रभसूरि और आचार्य रत्नप्रभसूरिने वडी वडी कठनाईयों का सामना कर अथाग परिश्रम तथा आत्मबल और वडी चतुराई से जैनधर्म को पसरित करने को खुब प्रयत्न किया, फलस्वरूप में ' महाजनवंश' की स्थापना की जिसका विस्तृत वर्णन प्राचीन पटावलियों व वंशावलीयों से लिखा गया हैं । उपदेश में कई स्थानों के अवतरण जैसे वंशावलियों में थे उनको उसी रूप में रक्खा गया है कारण वह साहित्य की दृष्टि से जनोपकारी है। इसी खण्ड के चतुर्थ प्रकरण में एक विवादास्पद बात का
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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