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________________ ६०१ मुनि श्री का मारवाड़ को ओर प्रकार से लाभ है, एक तो महात्मा की सेवा, दूसरे ज्ञान की वृद्धि, तीसरे प्रचलित धमाल की अपेक्षा यहाँ आपका चारित्र भी निमलता से पलेगा, तथा प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। युगल मुनिवरों ने विश्वास दिलाते हुए कहा, मुनि जी! आप इधर की ओर का किंचित् मात्र भी फिक्र न करें, यह जैसे आपके गुरु हैं वैसे हमारे भी गुरु हैं, बन सकेगा वहाँ तक हम सेवा भक्ति और व्यावञ्च का लाभ अपश्य उठावेंगे, आप वापिस शीघ्र पधारें, आपके पधारने के बाद अपन सब बम्बई चलेंगे कारण बम्बई में आप जैसे व्याख्यानी वक्ताओं की खास आवश्यकता है, इत्यादि कहने के पश्चात् गुरु महाराज ने मंगलिक सुनाया, सिर पर हाथ रख कर कहा, जाओ ! तुम्हारा कार्य सिद्ध होगा । गुरुवर तो अपने दोनों साधुओं के साथ वापिस लौटे, और मुनिश्री ने मारवाड़ की तरफ मुँह कर विहार किया लेकिन आपको पग २ पर गुरु महाराज का ही स्मरण होता रहा। शाम को एक ग्राम में पहुँचे, वहाँ जाकर बैठे तो श्राप इतने उदासीन हो गये कि श्रावकों के श्रामत्रण होने पर भी गोचरी पानी की नहीं सूझी, रात्रि में आप विचार करने लगे कि प्रातःकाल झगड़िया चल गुरुवर्य के दर्शन करें, फिर विचार आता है कि कहीं इससे गुरु महाराज नाराज तो नहीं हो जावेंगे, इत्यादि । प्रातः काल विहार किया और इस प्रकार विहार करते हुए क्रमशः आप पादरे पाये, वहाँ आचार्य बुद्धिसागरसूरि विराजते थे, आप बड़े हो योगीराज, शान्त स्वभावी और अच्छे मिलनसार थे । आपश्री ने मुनिश्री का अच्छा स्वागत किया। श्राया हुआ आहार-पानी सबने साथ में बैठ कर भोजन किया । दूसरे दिन
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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