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________________ आदर्श - ज्ञान- द्वितीय खण्ड तीर्थ पर घास फूँस जितनी भी कदर नहीं है ? यह तीर्थ क्या एक चौर पली है, जिसकी जेब में मुनीमों का खप्पर भरने को पैसा है वह तो वहां आराम से ठहर सकता है, नहीं तो भटकता फिरो, कोई पूछता भी नहीं है जिसको मैं आज नजरों से देख रहा हूँ । श्रतएव अलग पेटी खोल कर मारवाड़ी यात्रियों का प्रबंध करवाना हमारा मुख्य कर्तव्य है, इसी कारण मेरा यहां आना हुआ है ! हां मुझे यदि जगह नहीं मिले तो मैं तो सड़क पर भी ठहर सकता हूँ, पर हमारे भाइयों को हम इस प्रकार दुखी देखना नहीं चाहते हैं, इत्यादि १|| घंटे तक मुनिश्री ने व्याख्यान दिया । यह बातें पेडी के मुनीम एवं धर्मशालाओं के मुनीमों के कानों तक पहुँची । पेडी के मुनीम ने आकर मुनिश्री से प्रार्थना की कि, साहेब श्र पने माटे श्रीं बहु मकान छे, चालो मोती सुखियानी धर्मशाला चालो आ कोटावालानी धर्मशाला, आ मधुलाल बाबूनी धर्मशाला, चालो श्रा पुरीबाई नी धर्मशाला, नहीं तो मारवाड़ी बंडो आपने माटे तैयार छे । तथा धर्मशालाओं के मुनीमों ने भी आकर रही विनती की, इस पर मुनिश्री ने कहा, मुनीमजी मैं तो अकेला साधु हूँ, मुझे इतने बड़े मकानों की आवश्यकता नहीं है, मैं तो इस सड़क एवम् किसी घोटला पर रह कर भी तीर्थयात्रा कर सकूंगा, पर इस तीर्थ पर इतना पक्षपात ! इतना भेदभाव कि किसी के लिये तो बंगला खुल्लता है, और किसी भाई को पैर रखने को भी स्थान नहीं मिले, यह कितना अन्याय है ? मुनीम ने कहा नासाहेब, वात गलत छे, अहीं कोई नो पक्षपात नथी पण बधा नो सरकार थाय छे। साहेब दिन चढ़ी गयो छे, हम तो पधारो, पछी हूँ आपनी सेवा में हाजिर थईश, अने अहीं नी बधी ५५८
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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