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________________ आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ५३६ बंबई के सेठिये लोग आपकी विनती करने को आये और अत्यन्त ही प्रहपूर्वक विनती की, किंतु मुनिश्री को परम पुनीत शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा करने की बड़ी भारी उत्कंठा थी और आपने कई विगइयां आदि को भी छोड़ रखी थी, अतः बंबई की विनती न मान कर यात्रा का ही निश्चय किया गया । चतुर्मास समाप्त होने पर झवेरी छोटुभाई इच्छाचंद के वहां गोपीपुरा में चतुर्मासा बदलाया जिसमें सेठ साहिब ने पूजा प्रभावना ज्ञानवृद्धि में और स्वामी- वात्सल्यादि शुभ कार्यों में करीब दो हजार रुपयों का खर्च किया । ८४ श्री सिद्धगिरि की यात्रा के लिए प्रस्थान BASE सुरत में श्रीमोहनलालजी महाराज के साधुओं का गोपीपुरा में चतुर्मासा था, उनमें श्रीमाणकमुनिजी और लब्धिमुनि जी को भी शत्रुंजय की यात्रा करनी थी। मुनिश्री को अच्छा संयोग मिल गया, गुरु महाराज की आज्ञा लेकर मुनिश्री ने यात्रा के लिये बिहार किया, दोनों मुनिवर भी साथ में थे कतार गांव, सायण, कोम कसुबा हो कर कलेसर आए - जिस रोज आप त्रिपुटो, अंकले सर पहुँचे तो वहां एक दुखद घटना यह घटी कि अंकलेसर के पास दो कोस पर एक गांव था; वहां दो जैनमंदिर और दो सो घर पाटीदार श्रावकों के थे। किंतु स्वामीनारायण पंथ का कोई उपदेशक आया, उसने उन २०० घर वालों को उपदेश देकर इस प्रकार चक्र में डाला कि वे जैन धर्म त्यागने के लिये उद्यो गए तथा उनके असर लोग अंकलेसर आकर मंदिरों की चावि यां डालड़ीं और कहा कि हम स्वामिनारायण मत में जाते हैं,
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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