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________________ जघड़िया तीर्थ पर मिलाफ बड़ोदरे से मकरपुर, इटाला, मीयागांव, करजण, पालेज, जिणोर, अंगालेसर होते हुए जघड़िया जाकर भगवान श्रादीश्वर जी के और गुरु महाराज श्री रत्नविजयजी के दर्शन किए जिससे बड़ा ही आनन्द हुआ; क्यों न हो ? दो वर्ष से गुरु महाराज के दर्शन हुए, मुनिश्री ने योगीराजश्री को अर्ज की कि आप कौसाने का नाम ले कर मुझे नवदीक्षित को अकेला छोड़ श्राये ? गुरुजी उत्तर दिया कि जीव तो सब अकेले ही हैं फिर यदि तुम्हारे जैसे को अकेला छोड़ दिया तो क्या हुआ ? मैंने फलौदी एवं जोधपुर के सब समाचार सुन लिये हैं, तुम एक ही सौ जितने हो और इस बात का मुझे पक्का विश्वास है कि तुम अकेले रहो तो भी कोई हर्ज नहीं है, इत्यादि । किर रात्रि में दो वर्ष की सब बातें हुई | गुरु महाराज ने भी कौसना की घटना से लगा कर जघड़िया तक का सब हाल कह सुनाया, अंत में मुनिश्री ने कहा, गुरु महाराज अब इस दास को कहीं दूर न रखें, कारण आप भी अकेले और मैं भी अकेला रहूँ, इसमें अच्छा नहीं मालूम होता है । गुरुजी - कहा तुम्हारा यह कहना सत्य है । पन्यासजी और योगीराज के भी आपस में मिलाप होने से बड़ा ही आनंद श्राया; हम पहिले कह चुके हैं कि पन्यासजी बड़े ही मिलनसार साधु थे । मान, बड़ाई, अहंपदतो आपके दिल के नजदीक तक भी नहीं फटकता था, इतना बड़ा साधु होने पर भी ऐसी सादगी, सरलता और लघुताई शायद ही किसी साधु में होगा ? ५०१ ३२
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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