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________________ HTTER ४८१ एक बुढ़िया प्रश्नों के उत्तर नी यात्रा करवी छे, एटला माटे तो अमे मारवाड़ थी आव्याछिये । बुढी-करजो यात्रा शत्रुञ्जय त्यांज छ । मुनि-अमे पहिला ढूंढिया हता यात्रा करी नथी अटले तीर्थ भेटवानी उमंग लागो छ, एटले सत्वर थी जवा ना। बुढ्ढी-शुतमे ढूँढिया हता? मुनि०-हाँ। बुढी-तो तमे आ बधो ज्ञान ढूंढिया मां रही भण्या छो ? मुनि०-हाँ, बहेन । बुड्डी-तो शुढिया मां पण एटलो ज्ञान होय छे ? मुनि०-ज्ञान नो कोई ए इजागे नथी लीधो, भणे तेनो ज्ञान । बुड्डी-त्यारे तमें ढिया धर्म केम छोडी आव्या ? मुनि०-ढियाओं नी श्रद्धा खोटी छे तेत्रों मूर्तिपूजा मानता नथी। ' बुड्ढी-अरे श्रा शुकहो छो मूर्तिपूजा नथी मानता त्यारे तेश्रो जैन तो पण मनुष्यत्व मां पण नथी। मुनि०-त्यारेज अमे मिथ्या पंथ ने छोड़ी निकल्या अने सिद्धाचलनी यात्रा जवा आज्या लिए । ____ बुढी-हाँ साहेब तमारो कहेवू साचुछे, लो टाइम थई गई छे, आहार पानी माटे पधारो, हूँ आपने साथे चालीने घर बतावी आपुं। मुनि:-शुतुमारे त्याँ श्रावक नथी ? - बुड्डी-श्रावक छे पण लागणी ओछ। छे एनो कारण अहीं साधु ठेरता नथी, कदी विहार करता आवे तो एक बे दिवस ठेरे छ । मुनि०-तमे अवसर देखो, हुँ तो गोचरी पाणी लइ आवीश । बुड्डी-पण. आ तमारे साथे बुढा ( डोसा) माणस छे ते रोटला क्या जमशे।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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