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________________ ४५१ शास्त्रार्थ के लिये कोशिश जी से पूछ लो; वे झूठ नहीं बोलेंगे; अतः मैं आपके पास पूछने के लिए आया हूँ। फूल०-हम हमारा आचार है वैसा करतेहैं, गयवरचन्दजी हमा री निंदा क्यों करते हैं; क्या उनको पढ़ाया जिसका बदला देते हैं ? भंडारी०-महाराज हमने दो घन्टे तक गयवरचंदजी महाराज का व्याख्यान सुना, किंतु उनकी जबान से निंदा का एक शब्द भी नहीं सुना, भले ही आप जी चाहे सो कहें। ___ फूल-गयवरचंदजी पीठ पीछे कहते हैं, किंतु सामने आवे तो खबर पड़े, क्यों कि मैंने तो उन को पढ़ाया है, वह विचारा मेरे सामने आ ही कैसे सकता है ? - भंडारी-पर आप अब उस ख्याल में न रहना, अब गयवरचंदजी वे नहीं रहे हैं पर उन का ज्ञान बहुत बढ़ गया है । .. फूल-तब लाओ मेरे सामने । - भंडारी०-हाँ मैं उनको आपके पास ला सकता हूँ। फूल-यदि वह आवेंगे तो मैं चर्चा करने को तैयार हूँ। अधिक नहीं किंतु मैं उनसे ये ही तीन बातें पूछंगा, जिन का उत्तर वे ३२ सूत्रों से दें; (१) रात्रि में पानी रखना साधु के लिए कहाँ लिखा है ? (२) शत्रुजय को तीर्थ कहाँ कहा है ? (३) क्या किसी श्रावक श्राविका ने जिनप्रतिमा को पजी है ? • भंडारी०-अच्छा, मैं गयवरचंदजी महाराज को पुच्छ कर निर्णय करके आता हूँ। आपतो चर्चा करने को तैयार हैं न ? फूल-हां, मैं तैयार हूँ। भंडारी०-तपस्वीजी के और हमारे बातें हुई वे तो सब सत्य हैं ना ?
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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