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________________ ४२१ लोहावट में सश वाचना साधुजी-आपको जाना तो ओसियाँ ही है एक सूत्र बांच के भी पधार सकते हों। ____ छोगमलजा कोचर ने कहा कि इतना आग्रह है तो आगे जा कर ही आपको क्या करना है ? मुनिराज एवं साध्यिों के कारण हम लोगों को भी एक बड़ा सूत्र सुनने का सौभाग्य मिलेगा कि जिसके दर्शन तो क्या पर नाम तक भी हम लोगों ने नहीं सुना है। मुनि-आपको सूत्र बांचने की बड़ी रूची थी, दुसरा आप कष्ट सहन कर के भी परोपकार करने में तत्पर रहते थे अतः आपने कहा-अच्छा ठाक है । किंतु दोपहर को ठीक एक बजे सूत्र शुरू होगा तब ही १५ दिनों में समाप्त होवेगा । लोहावट में एक प्रकार से पर्युषणों का ठाठ लग गया; सूत्र सुनने को इतने लोग आ रहे थे कि बैठने को स्थान भी मुश्किल से हो मिलता था । तद्यपि मुनिश्री ने क्रमशः १५ दिनों में श्री जीवाभिगम जैसे एक बड़े सूत्र को बड़ी खूबी के साथ बाँच दिया; यही कारण है कि लोहावट एक खरतरों का पक्का गाँव होने पर भी मुनिश्री पर इतनी श्रद्धा भक्ति बढ़ गई कि वे खरतरों के साधु साध्वियों से भी आप पर अधिक श्रद्धा रखने लग गये, और यह भी उस समय तक ही नहीं किंतु आज पर्यन्त उसी उत्साह से सेवा भक्ति करते हैं । खरतरगच्छीय साधु साध्वियों ने मुनिश्री का इतना उपकार माना कि जिसका मैं यहाँ वर्णन नहीं कर सकता हूँ । वास्तव में ज्ञानदाता का उपकार मानना ही चाहिये। मुनिश्री लोहावट से ओसियां पधारे, रूपसुंदरजी आपके साथ में ही थे । नौ मास हो गये किंतु आपको अभी तक राई देवसि
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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