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________________ मादर्श-ज्ञानद्वितीय खण्ड - सूत्र को पूजा के पश्चात् व्याख्यान प्रारम्भ हुआ, सावियाँ भी सुखविपाकसूत्र के पाने हाथ के लेकर व्याख्यान में बैठ गई किन्तु जब आपका व्याख्यान आरम्भ हुआ तो नगरी के अधिकार में मूलसूत्र में 'वरणओं' पाठ आया इसका अर्थ करना शुरू किया तो साध्वियों के पन्ने हाथ के हाथ में ही रह गये, और व्याख्यान एक नगरी के वर्णन में ही समाप्त हो गया; जो उत्पत्तिक सूत्र में नगरी का वर्णन किया था वह मुनिजी ने बिना ही सूत्र मुँहजबानी कह सुनाया, साध्वियों उस नगरी का वर्णन सुन कर चकित हो गई । क्योंकि ज्ञानश्री, वल्लभश्री, गेवरश्री, रत्नश्री, मुक्तिश्री, प्रश्न श्री, इत्यादि अच्छी सममदार और ज्ञानरुचि वाली थीं। ___ भावना अधिकार में आपने एक कथानीक चरित्र छेड़ दिया ताकि श्रोतागणों की इच्छा व्याख्यान से उठने की न हो; आप भी अकेले फक्कड़ थे, और गोचरी की तो आपको परवाह हो नहीं थी। बस, व्याख्यान की प्रसिद्धि सर्वत्र शहर में हो गई; जो आदमी पर्युषणों में भी नहीं आते थे वे भी मुनिश्री के व्याख्यान में आने लगे । दिन-ब-दिन परिषदा बढ़ने लगी, यहाँ तक कि इतनी विशाल धर्मशाला होने पर भी देरी से आने वालों को स्थान के अभाव में बाहर खड़ा रहना पड़ता था । ___एक तो फलौदी में सम्प्रदाय के घर बहुत थे, दूसरे लोग प्रायः दिसावरी थे कि उनके ऐसा ज़रूरी काम भी नहीं था, तीसरे लोगों को व्याख्यान सुनने का शौक था, जिसमें महिलाएं तो यहाँ तक कि वे रसोई करना छोड़ कर व्याख्यान सुनना चाहती थीं और सबसे बढ़िया बात तो यह थी कि मुनिश्री की व्याख्यान देने
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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