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________________ २१३ उदयपुरके श्रावकों का प्रश्न पूज्यजी-चौस्पर्शी अनंत प्रदेशी परमाणुओं के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श के कितने रस भाग होते हैं ? इस प्रकार पूज्य जी ने उदयपुर के श्रावकों के प्रश्न को ऐसे समुद्र में डाल दिया कि कई दिनों तक जिसका अन्त नहीं पा सके; जैसे किसो आदमी से बाप के बाप का पता पूछा जावे, तो वर्षों तक अन्त ही नहीं आये। ____ उदयपुर के श्रावक समझ गये कि इस समय हमारे प्रश्न का उत्तर देने की पूज्यजी महाराज की इच्छा नहीं है । ऐसी हालत में श्रावकों ने कहा पूज्यजी महाराज आज आप बिहार कर पधारे हैं, अभी शयन करें, तथा प्रश्न कल पूछ लेगें । इतना कह वन्दन कर उदयपुर तथा जावरा के श्रावक चले गये। साधुओं ने भी अपनी क्रिया कर शयन किया और सब पर निद्रा देवो ने अपना प्रभाव जमा दिया; किंतु एक पूज्यजी महाराज को निद्रा नहीं आई। वे इस विचार में थे, कि अभी तो मैंने उदयपुर के श्रावकों को युक्ति से रोक दिया है। परंतु प्रातःकाल वे गयवरचन्दजी के साथ विवाद किये विना नहीं रहेंगे । अतः कोई ऐसीयुक्ति सोची जाय कि प्रातःकाल जल्दी ही गयवरचन्दजी को यहां से विहार करवा दिया जाय इस विचार से पूज्यजी महाराज रात्रि को १२ बजे गयबरचन्दजी के पास आये और जगा कर कहने लगे गयवरचन्दजी अबकी चतुर्मास कहां करना है ? गयवर०-आपकी सेवा में। पूज्यजो-यदि तुमारे जैसे लिखे-पढ़े और व्याख्यान देने वाले साधु ही मेरे साथ चतुर्मास करेंगे, तो फिर अनपढ़ साधुओं का निर्वाह कौन करेगा?
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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