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________________ श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः । सिरमावदे महकाएं। हे नमा सिद्धम विजय प्रेम-भुवनभानु जयघोष - धनजेत-जलेसर शेखर सूरिभ्यो श्रीशंखेश्वर तीर्थधाम- धरना। नमः आ. अजितसेखर सूर की ओर से जो खुद - पू. सं. २०६६ सप्तविंशति गुणधारिका सा.श्री. मणिप्रभाश्रीजी म. आदि योग्य सादर अनुबंदन | विशेष में आपने शासनरत्न श्री कुमारपाल भाई के सूचन से जेनिइम कोर्स के सात भाग संशोधन हेतु मुझे भेजे थे। ● आपने जैन-जैनेसर वर्ग जैन धर्म के आत्मनिकर सर्वज्ञ कथित सिद्धांत अच्छी तरह से समझ सके इस हेतु से स्तुत्य प्रयास किया है। मुझे उम्मीद है कि जिज्ञासुवर्ग अवश्य इस कोर्स का अध्ययन करके से प्रकाशित अपनी आत्मा को भी ज्ञान के प्रकाश करेंगे। आशा है कि संशोधन करते करने जो सूचन किये हैं आप उन पर ध्यान देंगे। आप का यह प्रयत्न तब सही रूप से सफल होगा जब लोग इन बातों का ध्यान से अध्ययन कर के भावित होंगे। [ आप का प्रयत्न - आप का सर्जन इस ढंग से कामयाबी को हांसल करे यही शुभेच्छा। आचार्य अजितशेखरसूरि का सादर अनुबंदन। जं बिक्रम गुरुबर abiin ગુરૂ બી નથી પહોંચી તાકતા आहे ग्रथनु सर्वन हुरे छे..... निश्रय परंपरा स्वहस्ते लाला या राजसंसदीय वैलवथी सौंधी જૈન સ ધ ના अधुना विद्यासिका सा. श्री शि आशीर्वचन વિનાદિ જીભેદતા વિદુષિની ૨૧-૦થી અભિપ્રભારી જ દિશ્રમણીભૃણ મનુવંદના સુપ્તાના પૂર્વક લખાજીને शुरुपये . राजनेक ग्रंथों दुर्बल ने मोदी जी ने सो बहु समृद्ध छे स्खे संघसमक्ष भुडी या हे. से बहुत खुज प्रसन्नता थ વિશ્વતરક દિશાના મુન ના રામ ને સર સોંધ દા૫ક ોલી - સુંદર સંસ્કાર વર્જક શેલીમાં રજૂ કરીને નાળુઓ માટે જરુરી લઇ સ્ત્રીને આવી કે રાસનથી સેવાનું અનુમોદનીય કાર્ય કરેલ છે. साधी सरल भाषा मे ज्ञान नीलापना. सेवा साहिला ते पूरा रेल छ शतामा साहित्य सर्वान दुश्य हितलाभने सहा प्रतल धाय सेवा नाव 8: यहा तपस्वी तो हेच सांधे गैंडा उपख्यासु हो। नेक विषयों ने साँवरी लेतो के हा ने अगर करतो या विधाता रत्नलयी विद्याशक्ति नामक ग्रंथ निःस्वार्थ लावे स्वामनीवाल ने कनता समके ते लाभामा भाषा रहने छौली नो सोनाम सुगंध केवो संयोग स्थीरनुसरयानो सोमको प्रयास चूल उपकारख जने कम हुनुबंधु ग्रंथो सेना द्वारा जैन संघ के अस्ति सोना खाक्षा अपने खार्थीह सभार्य यसोधर्मसार हा नगर १४.१.२०१०
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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