SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खुशबू निर्दोष है? जयणा डॉली के मामले में तो मैं मानती हूँ कि मेरे ही संस्कारों में कमी थी, जिससे मुझे ऐसे दिन देखने पड़े। पर जयणा, खुशबू तो किसी और घर से संस्कारित होकर आई है तो क्या मेरे घर आने के बाद उसके सारे संस्कार चले गए। उसकी गलतियाँ तो छोड़ो जयणा, उसने मुझे वृद्धाश्रम भेजने तक का कह दिया और उसके बाद भी तुम यह कह रही हो कि गलती उसकी नही है तो क्या मैं गलत हूँ? जयणा : हाँ सुषमा, तुम गलत हो। माना कि उसने भी कुछ गलतियाँ की है, परन्तु उन सबके मूल में तो तुम ही हो। तुमने उसे ऐसी गलतियाँ करने पर मजबूर कर दिया। देखो मैं समझाती हूँ। सबसे पहली गलती तो तुमने खुशबू से तरह-तरह की अपेक्षा रखकर की है। तुमने मुझे बताया कि तुमने कई अरमान सजाए थे जैसे कि खुशबू के आते ही मैं घर से निवृत्त हो जाऊँगी सारा काम बहू कर लेगी। और जब तुम्हारे अरमानों को खुशबू पूरे नहीं कर पाई तब तुमने उसके साथ गलत व्यवहार किया। पर तुमने कभी इस बात पर गौर किया कि इस घर में आने से पहले वो क्या-क्या अरमान सजाकर आई थी? क्या तुमने उसके सपनों को पूरा करने की कोशिश की? पूरा करना तो छोड़ो तुमने तो उन्हें जानना भी जरुरी नहीं समझा। सुषमा : जयणा, तुम किन सपनों की बात कर रही हो? मैं कुछ समझी नहीं। जयणा : तुम उस दिन की बात ही देख लो। जिस तरह तुमने बहू से चाय बनाने की अपेक्षा रखी तो क्या वह लेट उठने पर भी तुम्हारे प्रेम की अपेक्षा नहीं रख सकती? उसने तुमसे कहा भी था कि कल मैं बहुत लेट सोई थी इसलिए उठने में देरी हो गई। उसने तुम्हें अपना मानकर सोचा होगा कि अब तो मैं नयी-नयी आई हूँ, मॉम मुझे कुछ नहीं कहेगी। परंतु तुमने तो आते ही उस पर कर्तव्यों का बोझ डाल दिया। सुषमा : जयणा मैंने उसे उसके कर्तव्य बताकर क्या गलत किया? जयणा : गलत तो नहीं किया। परंतु तुमने बहुत जल्दी कर दी। यही यदि कुछ समय तक तुमने उसे मात्र प्रेम दिया होता तो तुम्हें उसे यह सारी बात बताने की जरुरत ही नहीं पड़ती। तुम्हारे प्रेम से वह सारी बातें अपने आप सीख लेती। सुषमा, नई बहू को तो नवजात शिशु की उपमा दी है। क्या तुम नवजात शिशु से तुरंत ही चलने की, बोलने की, काम करने की अपेक्षा रख सकती हो ? नहीं ना। तुम उसे सिखाओगी, उसका ध्यान रखोगी, उसे प्रेम दोगी। यदि फिर भी न सीखे तो तुम उस पर गुस्सा न करके उससे और ज्यादा प्रेम करोगी। बस, यही बात बहू पर भी लागू होती है। 20-20 वर्ष तक
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy