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________________ निकालकर वृद्धाश्रम में भेज दिया तो उसका क्या हाल होगा ? वह द्वंद में फँस गई। वह न तो अपनी बहू को इतना स्वतंत्र देख सकती थी और ना ही अपने बेटे को छोड़कर वृद्धाश्रम में रह सकती थी। डॉली के जाने के बाद तो सुषमा के जीने का एक मात्र सहारा प्रिन्स ही था। हर माँ की तरह वह भी प्रिन्स से बुढ़ापे में सहारे की अपेक्षा रखती थी, परंतु अपने बेटे को इस तरह अपनी पत्नी के पीछे पागल देख उसकी सारी आशा निराशा में बदल गई। यदि हम खुशबू की बात करें तो भूतकाल में शादी से पहले उसने ऐसे अरमान सजाए थे कि उस घर में वह इतने प्रेम से रहेगी कि घरवालों को कभी डॉली की याद तक नहीं आएँगी। अतः वह तो इस घर में बेटी बनकर रहने की इच्छा से ही आई थी। परंतु सुषमा के बर्ताव ने आज उसे जानबुझकर डॉली का जिक्र करने तथा उसके विरुद्ध बोलने के लिए मजबूर कर दिया। यहाँ सुषमा को अब एक ऐसे सहारे की जरुरत थी जो उसे सही राह बता सके। जो उसकी बहू को समझाकर उसे वृद्धाश्रम जाने से बचा सके। ऐसे में उसे अपनी पुरानी सहेली जयणा की याद आई और वह तुरंत जयणा के घर पहुँच गई। बहुत दिनों के बाद सुषमा को देखकर जयणा आश्चर्य में पड़ गई जयणा : अरे सुषमा तुम ! आओ-आओ बहुत दिनों के बाद आना हुआ ? कैसी हो ? सुषमा : एकदम ठीक हूँ जयणा । तुम कैसी हो ? जगणा : देव-गुरु की कृपा से एकदम शाता में हूँ। आओ बैठो। - सुषमा जब जयणा के घर आ रही थी तब एक पल के लिए तो उसे बहुत संकोच हो रहा था कि वह जयणा से कैसे बात करेगी? परंतु जयणा के प्रेम भरे व्यवहार को देखकर सुषमा का दिल थोड़ा हल्का हो गया। इतने में जयणा की बहू दिव्या वहाँ आई दिव्या : प्रणाम आन्टीजी ! कैसी हो आप ? (दिव्या अंदर से पानी लेकर आई ) दिव्या : यह लीजिए आन्टीजी । अब पहले आप यह बताईये कि आप क्या लोगी चाय या शरबत ? सुषमा : नहीं बेटा, कुछ नहीं । दिव्या : नहीं आन्टीजी, ऐसा कैसे हो सकता है? आप इतने दिनों बाद हमारे घर आई हो। आपको मेरे हाथों से कुछ न कुछ तो लेना ही पड़ेगा। सुषमा : ठीक है बेटा ! तुम इतना ही कह रही हो तो आधी कप चाय बना लो। ( थोड़ी देर बाद दिव्या चाय और नाश्ता बनाकर ले आई और सुषमा के आगे टेबल पर रख दिया और खुद जहाँ जयणा सोफे पर बैठी थी, वहाँ उसके पास जमीन पर जाकर बैठ गई। जैसे ही
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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