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________________ आशीर्वचन ... काही श्री श्री मणीप्रभाश्रीजी आदि ठाणा आशापुरा । 'हम शाला पूर्वक हैं, आप समस्त ठाता की भी सुखाला की परमात्मा से मंगल कामना करते हैं! ''विशेष:- यह जानकर अति प्रसन्नता हुई कि "श्री विश्वतारक रत्नत्रयी विद्या शक्ति जैनिङ्म कोर्स" का "प्रकाशन हो रहा है. ! कम्प्यूटर इंटरनेट के इस आधुनिक एवं अतिरिक्त युग में औन संस्कृति एवं इस संस्कृति से जुड़े युवाओं के लिये जैनिज्म कोर्स संजीवनी है जो कि बिगड़ी हुई दशा एवं दिशा दोनो को पु नवजीवन प्रदान करेगी ! संस्कृतिक आचार-विचार सम्यक श्रुत ज्ञान के लिये आपका लगाव अनुमोदनीय है ! जैन जागृति के लिये किया गया आपका शंखनाद प्रशंसनीय है आपके प्रचंड पुरुषार्थ एवं परिश्रम को मैं अनुमोदना करता है। यह केसी विश्वव्यापि बने तथा पाठकण मामी बनें! इस भागिरथ शुभ कार्य के लिये शुभाशिर्वाद प्रदान करता हुँ तथा परमात्मा के कामना करना " हूँ कि भविष्य में भी ऐसे प्रवीन एवं रचनात्मक कार्य करके समाज को लाभान्वित करती रहें! मी नाम हे भेन्द्र सूदि जैन धर्म जन जन का धर्म है। चित्र में धारण करें, श्रद्धा से स्वीकार करे और आचरण में अनुभव करे, उसे इस धर्म की गहनता एवं गंभीरता का ज्ञान हो सकता है। राग-द्वेष से मुक्त, सर्व जीव समत्व दृष्टिघारी इसे अरिहंत परमात्मा द्वारा प्ररुपित एवं स्थापित यह धर्माशना का सुंदर पथ है। के 'अ' से लेकर 'ज्ञ' तक की सारी विधाएँ इस धर्मग्रियों से प्राप्त होती है। शून्य से सृजन तक का गहरा ज्ञान जैन दर्शन में उपलब्ध है। उसी ग्रहन शान सागर में से चुन चुन कर अनेक मोतीयों को माला में रूपान्तरित कर 'जैमिन्स कोर्स' नामक पुस्तक को तैयार किया है विदुषी साध्वानी श्री मविप्राणी ने! यो प्रकाशित होकर पाठकों के सम्मुख है। इस पुस्तक के अध्ययन द्वारा आबाल वृद्ध सभी स्वयं को स्वगुण से समुद्ध कर सकते है। ज्ञान प्रकाश मे अपने जीवन विकास के कदम आगे बढ़ाकर वस्तु स्वरूप के संप्राप्त कर सकते हैं। साध्वीजी का प्रयास एवं श्रम की अनुमोदना कर मैं उनके जीवन में वे साहित्य जगत में अग्रगामी बने, यह शुभकामना करता हूं। -G-मू विसर 151 10/2010
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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