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________________ ४२ दान : अमृतमयी परंपरा माहात्म्य। इसीलिए नीतिकार दान को धन की सुरक्षा का सर्वोत्तम उपाय बतलाते हैं ."उपार्जितानामर्थानां त्याग एव हि रक्षणम् । तड़ागोदरसंस्थानां परीवाह इवाम्भसाम् ॥" - पंचतन्त्र २/१५५ ___ उपार्जित किये (कमाये) हुए धन का दान करते रहना ही उसकी रक्षा है । जैसे - तालाब के पानी का बहते रहना ही उसे गन्दा न होने देने का कारण है। ____महाकवि नरहरि सम्राट अकबर के दरबार में प्रसिद्ध कवि थे । एक बार उन्होंने दिल्ली से अपने पुत्र हरिनाथ के पास विपुल धनराशि भेजी । हरिनाथ ने वह सारा धन गरीब ब्राह्मणों को दान कर दिया। जलाशय में पानी संचित होकर पड़ा रहे तो वह गन्दा हो जाता है, उस पानी को बहते रहना जरूरी है; इसी प्रकार धन का भी बहते रहना अच्छा है, अगर दान का प्रवाह बहता रहता है, तब तो धन अनेक हाथों में जाकर सुरक्षित हो जाता है। दान के साथ ही पुण्यरूपी धन की भी सुरक्षा हो जाती है। दूसरे शब्दो में कहें तो दान पुण्य का रिजर्व बैंक है । इसमें पुण्यरूपी धन सुरक्षित हो जाता है। तथागत बुद्ध ने कहा - "दिन्नं होति सुनीहितं ।" दिया हुआ दान ही चिरकाल तक निधि रूप में सुरक्षित रहता है। एक विचारक ने भी कहा है - "प्रदत्तस्य प्रभुक्तस्य दृश्यते महदन्तरम् । दतं श्रेयांसि संसूते, विष्ठा भवति भक्षितम् ॥" १ दिये हुए एवं खाये हुए द्रव्य में बड़ा भारी अन्तर है। दिया गया द्रव्य श्रेय अर्जित करता है, पुण्योपार्जन करता है और खाये हुए का मल बनता है। जो दूसरों का दिया जाता है, वही वास्तविक धन है,क्योंकि वही १. चन्द्रचरित्रम्, पृ. ७१
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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