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________________ दान से लाभ मुहम्मद यहाँ कहाँ रहता है ?" उस व्यक्ति ने कहा सुस्ता लो, फिर मुहम्मद की तलाश करना । " ८९ "भाई ! तुम बहुत ही घबराये हुए हो, अत: पहले आगन्तुक – “मैं जब तक मुहम्मद का सिर नहीं काट लूँगा, तब तक और कुछ नहीं करूँगा ।" " तुम इतनी तेज धूप में आये हो, पहले जरा ठण्डे हो लो, फिर मुहम्मद को बतला देंगे और तब तुम उसका सिर काट लेना । मालूम होता है तुम बहुत ही भूखे प्यासे हो ।" उस व्यक्ति ने पुन: सहानुभूति बतलाई विरोधी ने कहा – 'चाहे मुझे कितनी ही भूख-प्यास हो, मगर पहले अपनी प्रतिज्ञा पूरी करनी है।" आगन्तुक को समझा-बुझाकर ठहराया और वह अपने घर में गये | अपनी पत्नी से बची हुई रोटी ली और बकरी के दूध में चूरकर तथा पानी का गिलास लेकर बाहर आये । समझाने पर आगन्तुक ने पानी • पीकर खाना शुरु किया । I आगन्तुक इस प्रकार के दान-सम्मान से बहुत प्रभावित होकर आभार स्वरूप कहने लगा “भाई ! तुम कितने भले हो ! उस मुहम्मद के गाँव में तुम कैसे रहते होंगे ?" जब उसने खा-पी लिया तब पूछा - "हाँ, अब ले चलो, मुझे मुहम्मद के पास ।" 1 उस आदमी ने मुस्कराकर कहा - " मुहम्मद सामने ही हाजिर है, सिर उतार लो ।'' "अरे ! यह क्या ? मुहम्मद और इतना उदार व दयालु । तो क्या यह भोजन और ठण्डा जल मुहम्मद ने ही दिया है ? क्या मैं अभी मुहम्मद से ही बातें कर रहा था ?" आगन्तुक ने पूछा। मुहम्मद ने कहा - "हाँ, भाई ! मुहम्मद यही है । यही आपकी खिदमत में हाजिर था ।" यह सुनते ही विरोधी पानी-पानी हो गया । उसके हाथ में से तलवार छूट गई । उसने नतमस्तक होकर हजरत मुहम्मद से क्षमा माँगी और कहा 44 'आज से मुझे अपना मित्र और सेवक समझें ।" मुहम्मद साहब ने उसे गले लगाया और उसे अपना पट्ट शिष्य बनाया । वास्तव में मुहम्मद साहब के उदारतापूर्वक दान, सम्मान का ही यह प्रभाव था कि शत्रु भी मित्र बन गया ।
SR No.002432
Book TitleDan Amrutmayi Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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