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________________ महाराष्ट्र विभाग (६२१ (१६. श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथजी तीर्थ - शिरपुर ) मूलनायक श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथजी अंतरिक्ष पार्श्वनाथजी जैन मंदिरजी मूलनायक श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथजी प्रभुजी की मूर्ति बेलुनी है तथा अर्द्धपद्मासन है। ३६ ईंच जितनी ऊंचाई है। फण सहित ४२ ईंच है। लेप किया हुआ है। श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ तीर्थ कमेटी शिरपुर (जि. आकोला) महाराष्ट्र। ___यह तीर्थ प्राचीन और प्रभाविक है। प्राचीन अंतरिक्ष पार्श्वनाथ मंदिर है तथा पास में श्री विघ्नहरा पार्श्वनाथजी का मंदिर है। बालापुर निवासी सेठानी समरथबेन तथा श्रीमती सरस्वतीबहन पू. आ. श्री विजय भुवन तिलकसूरीश्वरजी म. के उपदेश से चौमुख श्री विघ्नहर पार्श्वनाथजी मंदिर बनाकर उनकी शुभ निश्रा में सं. २०२० फाल्गुन सुदी ३ की प्रतिष्ठा की है। दूसरी परिक्रमा में २८ प्रतिमा है। श्वे. दि. समाधान अनुसार ३-३ घंटे के नंबर से प्रभुपूजा बिना न रहे इसलिए इस भव्य मंदिर की प्रतिष्ठा हुई है। प्राचीन इतिहास ऐसा है कि रावण के बहनोई खरदुषण कार्य के लिए जाते रास्ते में पूजा करने के लिए प्रतिमाजी लाना भूल गए जिससे रेत छाणकी प्रतिमा बना कर पूजा की फिर कएं में पधराई वह प्रतिमा शासन देव ने अखंडित रखी। वडा देश के इलायचीपुर के राजा श्रीपाल नामके चंद्रवंशी राजा थे उनको कोढ निकला वो घूमते इस कुएं के स्थान पर आए। थकान दूर करने के लिए हाथ, पैर, मुंह धोया। घर आकर शांति से सो गए सुबह रानी ने देखा कि जहां पानी लगा था वहां कोढ़ मिट गया। पूछा और फिर वहां ले जाकर राजा को स्नान करवाया। कोढ़ पूर्णरूपेण दूर हुआ। __ शासनदेव की आराधना की और स्वप्न आया कि खरदूषण द्वारा बनाई पार्श्वनाथ प्रभुजी की प्रतिमा यहीं है जो सूत के धागे से पालखी उतार कर बाहर निकालना गाडी में रखकर बछड़े जोड़कर तू आगे खींचना पीछे देखेगा तो प्रतिमा अधर रह जाएगी। राजा ने वैसा ही किया। परन्तु वजन नहीं लगने के कारण पीछे देखा। प्रतिमा अधर रह गई। गाड़ी चली गई, राजा को बहुत दुःख हुआ। वहां मंदिर बनाया श्रीपुर नगर बसाया परन्तु प्रतिमाजी आए नहीं। घड़ा निकले इतने उंचे रहे । मलधारी श्री अभयदेव सू. म. वहां पधारे उन्होंने धरणेन्द्र का स्मरण किया देव ने कहा, राजा ने मंदिर बंधवा कर गर्व किया है जिससे इस मंदिर में प्रतिमा नहीं आएगी। संघ के मंदिर में आएगी। उनके उपदेश से संघ ने मंदिर बनवाया।
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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