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________________ ५८६) श्री श्वताबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-२ जिन! रागे देरासर आएँ, तुमारी जय बोलुं। नमी भावना भावे भावु, अंतर वात हुं खोलुं । (अंचली) साखी पापी मारी जिंदगी, पापो आपथी दूर; दया करी आ दासने राखोने चरण हुजूर। अंतर वात हुं खोलुं.....जिन. त्हारे दासो छ घणा, म्हारे मन तुं अक; क्रोडो कष्टे नहिं तर्जु, प्रभु ओवी छे म्हारी टेक। अंतर वात हुँ खोलुं.....जिन. शिव पद प्रभुजी आपजो, तोडी भवनो पास; चार गतिने चूरजो, प्रभु अहवी अमारी आश। अंतर वात हुँ खोलुं.....जिन. सिद्धाचलना साहिबा, नामे आदि जिणंद नेह नजर करीनाथजी, मने आपो ज्ञानामृत वृंद। . अंतर वात हुँ खोलु.....जिन. मूलनायक श्री आदिनाथजी १३. श्री देवास तीर्थ देवास जन मदिरजी
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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