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________________ मध्य प्रदेश 00 386 मूलनायक : श्री सुपार्श्वनाथजी जगद्गुरु हीर सू. म. के प्रशिष्य पू. देव सू. म. यहां यह तीर्थ विंध्याचल पर्वत के एक उंचे शिखर पर मांडव जहांगीर बादाशाह की विनती से पधारे और महात्मा बिरुद दर्ग विशालकोट में है। आज इस पर्वत को मांड कहते हैं। पू. श्री. को दिया। यह तीर्थ बहुत प्राचीन है। संग्राम सोनी ने यहीं मंदिर यहां मूल मंदिर श्री सुपार्श्वनाथ प्रभुजी का है। प्राचीन बनाकर श्री सुपार्श्वनाथ प्रभुजी की प्रतिष्ठा की है। संग्राम धातु के शांतिनाथजी के मिलने से श्री शांतिनाथजी का मंदिर सोनी ने मक्सीजी तीर्थ में और गिरनार तीर्थ मंदिर बनाकर बनवाया। उसके पीछे वर्तमान में श्री समृद्धि पार्श्वनाथजी प्रतिष्ठा कराई है। गिरनार तीर्थ पर संग्राम सोनी की टोंक का मंदिर मूल मंदिर के खंडहर के स्थान पर बंधवाया है। आज प्रसिद्ध है। सुपार्श्वनाथजी की मूल प्रतिमा बुरहानपुर है ऐसा कहा जाता है। पूर्वकाल में यह तीर्थ था। परंतु वि. सं. १४७२ में यह अमलनेर से पू. पं. श्री हंसविजयजी म. यहां संघ के तीर्थ फिर प्रसिद्धि में आया हो ऐसा जाना जाता है। साथ पधारे और अस्तव्यस्त तीर्थ देखकर वहां तीर्थ की आज जगह-जगह खंडहर और दूसरे अनेक स्मरण शुरुआत कराकर अमलनेर के संघ द्वारा पेढ़ी खोली। वि. देखकर बारहवीं सदी से पांच सौ वर्ष का इतिहास यहां जुडा सं. १९९२ में मूलनायक एक मूर्ति थी। बाद में पू. उ. श्री हुआ है। मंत्री पेथडशाह उनके पुत्र झांझण शाह तथा पूंजराज धर्मसागरजी म. पू. पं. श्री अभयसागरजी म. ने इस तीर्थ के मुंजराज उपमंत्री मंडन, गोपाल खजानची संग्राम सोनी, ज्यादह उद्धार में प्रेरणा की। दीवान जीवन और मेघराज आदि ने अटूट संपत्ति खर्च करके ___ यहां रानी का महल, गदाशाह की दुकान की उंची दीवालें यहां और दूसरे अनेक जिन मंदिर बनवाये हैं। और यात्रा आज भी खड़ी है। राजा भर्तृहरि और राजा विक्रम की यहां संघ निकाले हैं और परोपकार के कार्य किए हैं। जैन धर्म सभाएं थी। औरंगजेब के समय में इस तीर्थ का बहुत बिगाड की अप्रतिम प्रतिष्ठा बढ़ाई है। हुआ। मंदिर गिराकर मूर्तियों का नाश हुआ। धनवान लुट लिए गए। आज भी बहुत विशाल मंदिर मस्जिद के रूप में यह बातें आज भी जैनधर्म में और जगत के इतिहास में खड़े हैं। पुरातत्त्व की देखरेख में है। यहां की बहुत सी प्रसिद्ध है। किवदंतियां प्रसिद्ध है। बादशाहों और जैन मंत्रीयों सेठियों श्री पेथडशाह के पास चित्रावली और पारसमणि थे। के अनेक प्रसंग हैं। उन्होंने श्री धर्मघोष सूरीश्वरजी म. के स्वागत में ७२ हजार यहां धर्मशालाओं तथा भोजनशाला आदि सुविधा हैं। ढंक का व्यय करके अद्भुत प्रवेश कराया था। मंडन उपमंत्री शांत मनोहर तीर्थ है। अभी पीछे के भाग में श्री शत्रुजंय ने मंडन शब्दांत वाले अनेक ग्रन्थ लिखे जो आज भी आदि तीर्थों की रचनाएं हुई है और अनेक प्रसंग दर्शाकर विद्यमान हैं। संग्राम सोनी ने बुद्धिसागर ग्रन्थ की रचना की दर्शनीय हॉल आदि बनाये हैं। जिनकी प्रतिष्ठा पू. पं. है। और सुवर्ण के अक्षरों से आगम लिखवाये थे। बादशाह अशोकसागरजी म. के द्वारा सं. २०५१ में हुई है। अभी के मुहम्मद खिलजी के दरबार में उनको सम्मानित किया था। विकास में इंदौर, देवास, उज्जैन के जैन भाईयों तथा झांझण शाह ने उदारता से धार्मिक कार्य किए थे जिससे भभूतमलजी अहमदाबाद वालों का प्रयत्न है। बादशाह गयासुद्दीन ने उनको श्रीमाल, भूपाल और धार से मांडवगढ़ १३ कि.मी. होता है । पहाड़ियों के लघुशालिभद्र की उपमा दी थी। राजा जयसिंहदेव ने विशाल बीच रास्ता जाता है और किला खंडहर आदि आते हैं। रोड किला पेथडशाह के सहारे से बंधवाया था। घूमकर जाता है। सीढियां चढ़कर पास के किले में प्रवेश होता है। महु स्टेशन से ६५ कि.मी. जितना है। पीछे के रास्ते यहां एक काल में ७०० जैन मंदिर और पोषधशाला थी। से मुंबई आगरा रोड ३५ कि.मी. है परन्तु अभी जाने की पुरी छ लाख से ज्यादा जैनों की बसति थी। नया जैन आए तो व्यवस्था नहीं है। धुलिया तरफ भी एक रास्ता है। परन्तु उसको हर घर से एक सोने की मोहर तथा एक सोने की ईंट अभी वह चालू नहीं है। दी जाती। ऐसा साधर्मिक भक्ति का राग था। मु. मांडवगढ़ (जि.-धार) म. प्र. फोन: एस.टी.डी. (०७३६४ नं. ३२०२७) ON CO %3DOOT .. 00 Nool
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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