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________________ विसुद्धिमग्गो ठपितसीसच्छिन्नसप्पसण्ठानं। दिसतो द्वीसु दिसासु जातं। ओकासतो उपरि गलवाटके हेट्ठा च करीसमग्गे विनिबन्धत्ता गलवाटककरीसमग्गपरियन्ते सरीरब्भन्तरे ठितं । परिच्छेदतो अन्तभागेन परिच्छन्नं । अयमस्स सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव। (१६) ____ ३५. अन्तगुणं ति। अन्तभोगट्ठानेसु बन्धनं। तं वण्णतो सेतं दकसीतलिकमूलवण्णं । सण्ठानतो दकसीतलिकमूलसण्ठानमेव। दिसतो द्वीसु दिसासु जातं। ओकासतो कुद्दालफरसुकम्मादीनि करोन्तानं यन्ताकड्डनकाले यन्तसुत्तकमिव यन्तफलकानि अन्तभोगे एकतो अगळन्ते आबन्धित्वा पादपुञ्छनरज्जुमण्डलकस्स अन्तरा तं ससिब्बित्वा ठितरज्जुका विय एकवीसतिया अन्तभोगानं अन्तरा ठितं। परिच्छेदतो अन्तगुणभागेन परिच्छिन्नं। अयमस्स सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव। (१७) ___ ३६. उदरियं ति। उदरे भवं असितपीतखायितसायितं। तं वण्णतो अज्झोहटाहारवण्णं। सण्ठानतो परिस्सावने सिथिलबद्धतण्डुलसण्ठानं। दिसतो उपरिमाय दिसाय जातं। ओकासतो उदरे ठितं। ३४. आँत-पुरुष की बत्तीस हाथ (लम्बी), स्त्री की अट्ठाईस हाथ, इक्कासी स्थानों पर छल्लेदार आँत की नली है। वह वर्ण से-सफेद बालू (मिले) चूने के रंग की है। संस्थान सेरक्त की द्रोणी (पात्र) में मोड़ कर रखे गये, सिरकटे साँप के आकार की है। दिशा से-दोनों दिशाओं में उत्पन्न है। अवकाश से-ऊपर गले एवं नीचे मलमार्ग से बँधी होने से यह शरीर के भीतर गले एवं मलमार्ग (गुदा) के बीच में स्थित है। परिच्छेद से-आँत भाग से परिच्छिन्न है। यह इसका सभाग परिच्छेद है। विसभाग परिच्छेद केश के समान ही है। (१६) , ३५. आँतों का बन्धन (अन्तगुणं)-जहाँ जहाँ से आंत मुड़ी होती है, उन उन स्थानों का बन्धन । वह वर्ण से-सफेद दकसीतलिक (सफेद कुमुदनी) की जड़ के रंग का है। संस्थान से-दकसीतलिक की जड़ के ही आकार का है। दिशा से दोनों दिशाओं में उत्पन्न है। अवकाश से—यह आँतों के इक्कीस मोड़ों के भीतर पाया जाता है, जैसे पाँवपोश के रस्सी के छल्लों के भीतर भीतर, उन्हें सिलाई द्वारा एक दूसरे से जोड़ने वाली डोरियाँ पायी जाती हैं। यह आँत के मोड़ों को एक दूसरे के साथ कसकर जोड़े रखता है, जिससे कि उन लोगों की (आँत) खिसकने नहीं .पातीं जो लोग कुदाल, कुल्हाड़ी आदि चलाने का काम करते हैं; जैसे कि कठपुतली की (डोरी से) खींचते समय, कठपुतली की लकड़ी (से बने अवयवों) को कठपुतली की डोरियाँ बाँधे रहती हैं। परिच्छेद से-पतले आन्त्र-भाग से परिच्छिन्न है। यह इसका सभाग परिच्छेद है। विसभात्रपरिच्छेद केश के समान ही है। १. आधुनिक शरीरविज्ञान के अनुसार बड़ी आंत की लम्बाई करीब १.५ मीटर है, एवं छोटी आंत की लम्बाई करीब ५ मीटर है। दोनों, को मिलाकर लगभग ६.५ मीटर लम्बाई होती है। ऐसी स्थिति में यही मानना संगत प्रतीत होता है कि उपर्युक्त 'आँत' का तात्पर्य यहाँ बड़ी एवं छोटी दोनों आँतों से है, न कि बड़ी आँत से, जैसा कि कतिपय पूर्ववर्ती अनुवादकों ने भ्रमवश समझ लिया है। वैसे ही, 'अन्तगुणं' का अर्थ 'आँतों का बन्धन' है, न कि छोटी आंत । ग्रन्थकार द्वारा की गयी 'अन्तगुणं' की व्याख्या से भी यही सूचित होता है कि 'अन्तगुणं' का अर्थ छोटी आंत नहीं है।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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