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________________ ८२ अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो महन्तमहन्तानं अट्ठीनं अब्भन्तरगतं बेळुनाळियं पक्खित्तसेदितमहावेत्तग्गसण्ठानं। खुद्दानुखुद्दकानं अब्भन्तरगतं वेलुयट्ठिपब्बेसु पक्खित्तसेदिततनुवेत्तग्गसण्ठानं। दिसतो द्वीसु दिसासु जातं। ओकासतो अट्ठीनं अब्भन्तरे पतिट्ठितं। परिच्छेदतो अट्ठीनं अब्भन्तरतलेहि परिच्छिन्नं। अयमस्स सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव। (९) । २८. वक्कं ति। एकबन्धना द्वे मंसपिण्डिका। तं वण्णतो मन्दरत्तं पालिभद्दकट्ठिवण्णं । सण्ठानतो दारकानं यमककीळागोळकसण्ठानं, एकवण्टपटिबद्धअम्बफलद्वयसण्ठानं वा। दिसतो उपरिमाय दिसाय जातं। ओकासतो गलवाटका निक्खन्तेन एकमूलेन थोकं गन्त्वा द्विधा भिन्नेन थूलन्हारुना विनिबद्ध हुत्वा हदयमंसं परिक्खिपित्वा ठितं। परिच्छेदतो वक्कं वक्कभागेन परिच्छिन्नं। अयमस्स सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव। (१०) । २९. हदयं ति हदयमंसं । तं वण्णतो रत्तपदुमपत्तपिट्ठिवण्णं । सण्ठानतो बाहिरपत्तानि अपनेत्वा अधोमुखं ठपितपदुममकुलसण्ठानं। बहि मटुं, अन्तो कोसातकीफलस्स अब्भन्तरसदिसं। पचवन्तानं थोकं विकसितं, मन्दपज्ञानं मकुलितमेव। अन्तो चस्स पुन्नागट्ठिपतिट्ठानमत्तो आवाटको होति, यत्थ अद्धपसतमत्तं लोहितं सण्ठाति, यं निस्साय मनोधातु च मनोविज्ञाणधातु च वत्तन्ति। २७. अस्थिमजा-उन अस्थियों के भीतर की मज्जा। वह वर्ण से श्वेत हैं। संस्थान सेबड़ी बड़ी अस्थियों के भीतर (की अस्थिमज्जा) बाँस की नली में डाले गये, नमीयुक्त डण्डे के नोक के आकार की होती है। छोटी छोटी (अस्थियों) के भीतर (की अस्थिमजा) बाँस की लाठी के जोड़ जोड़ में डाले गये, नमीयुक्त पतले डण्डे के नोक के आकार की होती है। दिशा सेदोनों दिशाओं में उत्पन्न है। अवकाश से-अस्थियों के भीतर प्रतिष्ठित है। परिच्छेद से-अस्थियों की भीतरी सतह से परिच्छिन्न है। यह इसका सभाग परिच्छेद है। विसभाग परिच्छेद केश के समान ही है। (९) . २८. वृक्क (गुर्दा)-एक में बँधे हुए मांस के दो पिण्ड। वह वर्ण से हल्का लाल, पारिभद्रक की गुठली के रंग का है। संस्थान से-बच्चों के खेलने वाली गेंद के जोड़े के आकार का, या एक ही वृन्त (पतली डण्डी) में बँधे हुए आम के दो फलों के आकार का है। दिशा से-ऊपरी दिशा में उत्पन्न है। अवकाश से-यह हृदय के मांस के दोनों ओर रहता है, एक ऐसी मोटी नस से बँधा हुआ होता है, जो कि गले के गड्ढे (गलवाटक) से इकहरे रूप में उतरती है, और कुछ दूर जाकर दो भागों में बँट जाती है। परिच्छेद से-वृक्क, वृक्क भाग से परिच्छिन्न है। यह इसका सभाग परिच्छेद है। विसभाग-परिच्छेद केश के समान ही है। (१०) २९. हृदय-हृदय का मांस। यह वर्ण से लाल कमल के पत्ते के पृष्ठभाग के रंग का है। संस्थान से-बाहरी पत्तों को हटाकर, औंधे मुँह रखी हुई कमल की कली के आकार का है। बाहर से स्निग्ध, भीतर से कोशातकी (परवल?) के फल के भीतरी भाग के समान है। तीव्र प्रज्ञावानों का हृदय कुछ विकसित होता है, मन्द प्रज्ञावानों का केवल अधखिला। उसके भीतर पुनाग के बीज को रखने भर का गड्डा होता है, जिसमें आधी अञ्जलि भरने योग्य रक्त भरा रहता है, जिसके आश्रय से मनोधातु और मनोविज्ञान धातु होते हैं।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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