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________________ अवराधे दारुणतरं दडमिवत्ततिाकहं 1, पुत्तदारस्सेव यथोक्ता नि दंडस्थानानि शीतोदकादीनि अविरोसेणसयं करोति वा कारखेलिना एवं पुण केजि(यि)दो सवलियं अट्ठम किरियट्ठाण भागितुंपच्छाभांति, परे दोसवत्तियं णवर्म किरियाणं पच्छा माणवत्तियां दसम किरिया डाणं पच्छा माणबलियंट्सम किरियट्टाणं / एवं खलु तस्स सावजे सिट्समे किरियट्ठाण 10 // अहावरे एक्कारसमे किरियडाणे मायावसिएत्ति आहिजइसे जै इमे भवलि-मूढायारा तमोकाया उनुगपत्त - लहपापव्वतगुरुयाते आयरिटा विसंता अणा रियाती भासाली विउज्जलि,अण्णहासं अपना अण्णधा माणति, अण्णं पडा अण्ण - वागरे लि, अण्ण आइतितलं अण्ण भाइरपंति // से जहाणामए केइ पुरिसे अंतोसले त झालं णो सयं णीहरति णी अन्नैण णीहरावेति णो -पलिविखंसेति, एवमेव तिण्हवैति, अविट्टमाणे अंतीअंती झियातिाएवमेव माई मायंकह णी आलोएति णी पडिक्कमति णो जिंदति णो गरहति गोवि-- उदृतिणो विसौहलि जो अकरणयाए अस्मद्वेइ णौ आधारिधं सवोकामं पायच्छित्तं पडिबजाति,मायी अस्सिं लोए पच्छायाति मायी परंसि लौए प चायाति मिंदति गरहति पसंसति जिगरति णी णियवृति दृति) णिसिरियदंडं छाएति,माई असमाहउलेरसे याविभवति,एव रखनु लस्स टप्पत्तियं सावज्जति भाहिज्जाति, एकारसमे किरियहाणेमायावत्तिएति आहित // ---- ---------से ले वने भवंति गुदायारा गुह संवरणे"गूठोटो) आचारो औसिं ते गूठायारा,यथा तजगत सीदिनचारी
SR No.002426
Book TitleSutrakritanga Churni
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages284
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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