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________________ छिदलिउ हि एती किं कहतरंज 11हिंसतित्ति रुखसालं पडसं अनागतं चैव आयुधैण छिंदप्तिाहिंसति म्ति दोसुइमादी -- - कण्टए मलेति यथा वा साक्यभिक्षुः एलां पत्र छिन्नं वा यौगत्रिक करणत्रिकेण णिसिरति / सच्चे दंउसमायाणी३॥ - - - --- अहावरे चउस्य दंडसमादाणे अकस्मात् दंडवत्तिए ति आहिज्जइसे जहाणामए केइ पुरिसे कच्छसि वा जाब - -- ------ -- पब्बतविगंसिवा मिरावृत्ति मिगसंकप्पे मि पणिधान मिगवधाए गंता एते मिगसि कह अण्णयरम्स मियस्स बधाए उसु आयामेत्ता" र्ण जिसिरेजा, से मियं वधस्सामिति कह तितिरं या वहां वा चडछा वा लावगं वा कवीत बा कविवा कविमलं वाविधित्ता भवति इह -खनु से भण्णस्स अट्ठाए अण्णं फुसति अकस्मादडे / / से जENTIमए मई (केवापुरिसे सालीणि वा वी हीणि वा कोद्दवाणि वा कंगूणि वा --- -परगाणि बारालाणिवाणिसिज्जमाणे अण्णसंरग्स तस्स बहाए सत्य जिसिरहा, से सामगं मदणागं मुगुंदुगं वीहिश्वसितं कालेसुर्य सर्ण विदिस्सामि तिकट्टसालिं बाबीहिँ वा कोहवं वा के गुवा पर्श वा रालगं वा छिदित्ता भवाइ इतिखलु से अण्णास्स अट्ठाए अण्णं फुसति अकस्मा दंडे, एवं रखनु लस्स तप्पत्तियं सावज्जैसि आहिज्जइ, चर्को दंडसमादाणे अकस्मादेउवत्तिए ति आहिते // ------- अहावरे चउत्थे अकस्मावतिए सि आहिलाइ अकस्मात् नाम हे त्वा पञ्चमी अकस्मात से जहाणामए के इताव पब्बतविसिवा मिवृत्तीए मृगा एव यस्यवृत्तिासङ्कल्पो नामाभि प्राय: मृगान् मारयिष्यामि इति कृत्या गृहनिर्माच्छति तदेवास्य प्रणिपानं
SR No.002426
Book TitleSutrakritanga Churni
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages284
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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