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________________ प्रकांत पुण्यबंध पापबंधधवबंध मार्गणा प्रकृति प्रकृति प्रकृति ४२ ८२ ४७ परावर्त | वेदनीय | मोहनीय आयुकम नामकमसीन। अतराय अपरावते ज्ञानावरणा दर्शनावरणीप्रकृतिबंध प्रकृतिबंध नारणा प्रकतिबंध प्रति प्रकृतिबंध ९ प्रकृति " प्रकृतिबंध प्रकृतिबंध प्रकृतिबंध प्रकृतिबंध | HD कर्मप्रकृति बंध ५ कृतिबंध २ का ६७ A و و و و و .00.00 २६ मतिज्ञान २७ श्रुतज्ञान २८ अवधिज्ञान ३९४४ ३९ २९ मनःपर्यवज्ञान ३३ ३० केवळज्ञान ३१ मतिअज्ञान ३२ श्रुतअज्ञान ३९ ३३ विभंगज्ञान ३९ ३४ सामायिक ३३ चारित्र ३५छेदोपस्थाप-३३ و و و 0 م नीय [२६८] ३६ परिहारवि- ३३ م शुद्धि - ४० ३७ सूक्ष्मसंपाय ,,३ ३८ यथाख्यात १ ३९ देशविरति ४० अविरति ४१ चक्षुदर्शन ४२ अचक्षुदर्शन ४३ अवधिदर्शन ४४ केवल दर्शन ४५ कृष्णलेश्या ४६ नीललेश्या ४७ कापोतलेश्या ४८ तेजोलेश्या و و و و و و و و و و و م 00.00 000 0.0 á á • vn :: १ १ . ४०
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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