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________________ [२०२] तथा बीजं अने चोथु सामान्य जिनने होय. हवे सयोगी केवळी आश्री कहे छे.उदयस्थान ८ (२०-२१-२६-२७-२८-२९-३०-३१ ). आनुं विवरण सामान्य नाम कर्मना उदय भंग वखते सविस्तर आव्युं छे. सत्तास्थान ४ (८०-७९-७६-७५) संवेध संज्ञी पर्याप्त जीवद्वारमा कर्या प्रमाणे अहीं पण जाणवो हवे अयोगी केवळी आश्री कहे छे.उदयस्थान २ (८-९). ८ नुं अतीर्थंकर केवळीने. ९ नु तीर्थंकर केवळीने. सत्तास्थान ६ (८०-७९-७६-७५-९-८) ८ ना उदयमांत्रण सत्तास्थान--७९-७५-८. पहेला बे द्विचरम समय सुधी, अने आठy चरम समये ( अतीर्थकरने). ९ ना उदयमांत्रण सत्तास्थान-८०-७६-९. पहेला वे द्विचरम समय सुधी, अने नवनुं चरम समये ( तीर्थकरने ), इति गुणस्थाने बंधोदय सत्ता सवेध. गाथा ५३. हवे गत्यादि मार्गणाए बंधादिक कहे छे. प्रथम गतिमार्गणा आश्री कहे छे.नरकगतिने बंधस्थान २ ( २९-३०). २९ तिर्यंच अने मनुष्य गति प्रायोग्य. ३० तिर्यंच पंचेंद्रिय प्रायोग्य उद्योत सहित, मनुष्य गति प्रायोग्य तीर्थंकर नाम सहित. तिर्यंच गतिने बंधस्थान ६ (२३-२५-२६-२८-२९-३० ) पूर्ववत. विशेष एउटु के-२९-३० तीर्थकर आहारक सहित छे, ते अहीं न जाणवा. मनुष्य गतिमां बंधस्थान ८ (२३-२५-२६-२८-२९-३०-३१-१). देवगतिमां बंधस्थान ४ ( २५-२६-२९-३० ). २५-२६ एकेंद्रिय पर्याप्त बादर प्रत्येक आश्री समजवा. तेना भंग स्थिरा स्थिर, शुभाशुभ, यश अयश आश्री ८ थाय. तेमां २६ आतप उद्योत सहित थाय, तेथी आठने बमणा करतां १६ भंग थाय. २९ मनुष्य अने तिर्यंच पंचेंद्रिय प्रायोग्य थाय.
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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