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________________ [१९९] ३० नो उदय स्वभावस्थ तिर्यंच मनुष्यने होय. तेना भंग १४४ - १४४. आ भंग ६ संघयण, ६ संस्थान, २ सुखरदुःखर, तथा २ प्रशस्ताप्रशस्त गति वडे थाय छे. दुर्भग, अनादेय, अने अयशनो उदय अहीं नथी. वैक्रिय तिर्यंच श्री भंग १. कुल भंग २८९. ३१ नो उदय तिर्यंचने होय. तेना उदयस्थान पूर्ववत् ५ तथा भंग १४४. सर्व मळी भंग ४४३ (४-६-२८९-१४४). देशविरति गुणस्थाने सत्तास्थान ४ (९३ - ९२ - ८९-८८). मां अप्रमत्त अने अपूर्वकरणी परिणामना हासथी देशविरति थाय, ते आश्री ९३ नी सत्ता पामीए. बाकी चोथा प्रमाणे. ed देशविरति संवेध कहे छे. - देशविरति मनुष्य २८ ना बंधकने पांच उदयस्थान - २५-२७ - २८-२९-३०. मां प्रत्येके वे बे सत्तास्थान - ९२ - ८८. तिर्यंचने उदयस्थान ६. तथा सत्तास्थान २ (९२–८८). २९ नो बंध मनुष्यने ज होय. तेने पांच उदयस्थान, तथा वे बे सत्तास्थान ९३-८९. आ प्रमाणे देशविर तिने पांच उदयस्थानमां ४-४ सत्तास्थान तथा ३१ ना - उदयमां वे सत्तास्थान. कुल सत्तास्थान २२. हवे प्रमत्त संयत गुणस्थान आश्री कहे छे. - प्रमत्त संयतने बंधस्थान २ (२८ - २९) उपर प्रमाणे. प्रमत्त संयतने उदयस्थान ५ (२५-२७ - २८-२९-३०). तिर्यंचने आ गुणस्थान न होवाथी ३१ नुं उदग्रस्थान नथी. आ पांचे उदयस्थान आहारक अने वैक्रिय संयती आश्री जाणवा. तेमां ३० नुं उदयस्थान स्वाभाविक संयतीने पण होय. २५- २७ ना उदये भंग एक एक. कुल ४. २८-२९ ना उदये भंग बे बे. कुल ८. ३० ना उदये एक एक. कुल २. २० ना उदये स्वाभाविक संयती आश्री देशविश्तीवत् भंग १४४. कुल भंग १५८. प्रमत्त संयतने सत्तास्थान ४ (९३ - ९२ - ८९-८८). प्रमत्त संयत गुणस्थाने संवेध कहे छे. - -- २८ ना बंधकने पांच उदयस्थानमां वे वे सत्तास्थान - ९२ - ८८. तेमां आहारक संयतीने ९२ नुंज सत्तास्थान. वैक्रियने बन्ने, तीर्थंकर नाम सत्कर्मा २८ बांधतो नथी. तेथी ९३ नुं सत्तास्थान न होय.
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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